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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
अन्य शारीरिक शृंगार
एवं सुगंधित बनाने के उपाय करते थे । इसलिये वे अपने शरीर में अंगराग' और हरिचंदन २ मलते थे । स्त्रियाँ अपने पाँवों को लाह ३ अथवा महावर से रँगती थीं । वे नेत्रों में अंजन और ललाट पर तिलक लगाती थीं । दीर्घिकाओं में स्नानार्थ उतरती हुई स्त्रियों के पदों के रंग से उनके सोपान रँग जाया करते थे। रघुवंश के एक श्लोक ७ से पता चलता है कि स्नान के समय नदी में जलक्रीड़ा करती हुई स्त्रियों के नेत्रों का अंजन और होठों पर चढ़ा हुआ रंग, एक दूसरी पर क्रीड़ार्थ जल फेंकने से, किस भाँति धुल जाया करते थे । अपने शरीर को स्त्रियाँ कभी कभी सुंदर छोटो छोटो पत्तियों के चित्रण से विभूषित करती थीं। कपोले । * पर भी रंग चढ़ाया जाता था । अपने होठों पर लोध्र चूर्ण लगाकर वे उनका रंग पीत-काषाय १० करती थीं । एक श्लोक" के विश्लेषण से हमें निम्न लिखित बातों का बोध होता है - (१) होठों को आालक्तक रंग से रँगती थीं; ( २ ) पूरे मुखमंडल को भी रँगती थीं । यहाँ पर विशेषक शब्द का व्यवहार हुआ है जिसका भाव है - स्त्रियों के मुखमंडल पर विभिन्न रंगों के छोटे छोटे बिंदुओं का अंकन ( १ ) रघु०, ६; कुमार०, ७ ।
( २ ) वही ।
( ३ ) वही ।
( ४ ) वही ।
( ५ ) वही ।
( ६ ) वही ।
७ ) रघु०, ५३ ।
( ८ ) वही, ६, २६ । मालविका०, ३, ५ । ( 8 ) वही ।
(१०) वही ।
(११) मालविका०, ३, ५
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