________________
भारतवर्ष की सामाजिक स्थिति
४८१
कुंडल (कर्णाभरण), नथ, मुक्ताहार, हेमसूत्र और मस्तक एवं वेणियों में पहने जानेवाले आभूषण । बालों को प्राच्छादित करनेवाले रत्नजाल और कपड़ों में लगे जेवरों का भी वे स्त्रियों के श्राभूषण उपयोग करती थीं । प्रोषितपतिकाएँ उन आभूषणों के सिवा कोई आभूषण नहीं पहनती थीं जो सौभाग्यचिह्न स्वरूप नितांत आवश्यक न थे । अँगूठियाँ कई प्रकार की थीं । एक प्रकार की अँगूठी सर्पमुद्रांकित होती थी । दूसरी वे थीं जिन पर स्वामी का नाम खुदा होता था । तप्त चामीकर ३ के बने अंगद अथवा केयूरों का भी उल्लेख मिलता है ।
स्त्रियों की भाँति पुरुष भी लंबे केश रखते थे ।
दिलीप जब गाय की सेवा करने उसके पोछे पीछे वन को जाते हैं तो लता - प्रतानी से अपने केशों को बाँध लेते हैं स्त्रियाँ
केश
अपने लंबे केशों में तेल लगाकर कंघी करती थीं और उनको दो भागों में विभक्त कर माँग बनाकर वेणी बनाती थीं । इन लटकती हुई लंबी वेणियों में वे फूल, मोती और रत्नों को गूँथती थीं और माँग की रेखा को भी फूलों आदि से सुसज्जित करती थीं। सामने की अलकें एक प्रकार के मुक्ताजाल से प्राच्छादित कर ली जाती थीं । प्रोषितपतिकाऍं इनमें से कोई श्रृंगार नहीं करती थीं । स्नान आदि के अनंतर वे अपने केशों को अगरु और संदल आदि के धूम्र से सुखाती और सुगंधित करती थीं ।
शारीरिक शृंगार की बहुतेरी सामग्रियाँ भारतीय प्रयोग करते थे । पुरुष और स्त्री दोनों ही शरीर को सुंदर और स्वच्छ
४,
देवी |
(१) इदं सर्पमुद्रितमङ्गुलीयकम् । -- मालविका०, २ ) नाममुद्राचराण्यनुवाच्य... : - अभि० शाकुं०, १ । ( ३ ) विक्रमो०, १, १३ ।
( ४ ) रघु०, २, ८ ।
३१
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com