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________________ ४७६ भारतवर्ष की सामाजिक स्थिति ४७६ होंगे। इसका उल्लेख संस्कृत के चिकित्सा-साहित्य में अधिक मिलता है, जहाँ इसकी पवित्रता और इसके रोगनाशक गुणों की प्रशंसा की गई है। वधू के वस्त्रों के संकेत से ज्ञात होता है कि उसके वस्त्रां के भी दो अंग हुआ करते थे। उसका भी एक ऊर्ध्व और दूसरा अधो वस्त्र हुआ करता था। अधोवस्त्र आधुनिक साड़ी स्त्रियों के वस्त्र की भाँति होता होगा परंतु उसके सामने का चुना हुआ भाग एक सूत्र से बँधा होता था जिसे नीवी (इजारबंद) कहते थे और उसकी गाँठ को नीवीबंध कहते थे। नीवी का व्यवहार अभी हाल तक भारतवर्ष में होता आया है और अब भी कुछ स्थानों पर वृद्धाएँ नीवी की सहायता से ही अपनी साड़ी पहनती हैं। इनके अतिरिक्त वे एक प्रकार की चोली भी पहनती थी जिसे 'स्तनांशुकार कहते थे। इससे सारा ऊपरी भाग नहीं ढकता था पर, जैसा कि 'स्तनांशुक' शब्द से ज्ञात होता है, केवल स्तन-भाग ढकता था। इस प्रकार के स्तनांशुक मथुरा म्यूजियम की देवी-प्रतिमाओं पर मिल जाते हैं। इसी प्रकार के वस्त्र अजंता के चित्रकारों ने भी अपनी चित्रित स्त्रियों को प्रदान किए हैं। साड़ी के पहनने का उदाहरण भी हमें अजंता के चित्रों से उपलब्ध होता है। मथुरा म्यूजियम के एक उत्कीर्ण शिलापट्ट की सप्तमातृकाएँ घंघरीदार धोती पहने हुए हैं। बहुत संभव है, पहले इसी प्रकार की धोतियाँ पहनी जाती हों परंतु ये सिर से नहीं ओढ़ी जाती थी जैसा मथुरा के शिलापट्टों और अजंता के चित्रों से सिद्ध होता है। अजंता में यशोधरा और कितनी ही अन्य पात्रियाँ भी अधोभाग में केवल धोती भर लपेटे हैं। लंबिदुकूल स्त्रियों के लिये भी चादर का कार्य करता होगा जिससे वे (१) कुमार०, ७,६०। (२) विक्रमो०, ३, १२ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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