________________
४७८
नागरीप्रचारिणो पत्रिका होगा। अधोवस्त्र धोती की भाँति बाँधा जाता होगा। मथुरा म्यू. जियम में सुरक्षित शिलापट्टों पर उत्कीर्ण और कोरकर बनाई हुई
_अन्य मूर्तियों को जो वस्त्र पहनाए गए हैं वे ही पुरुषों के वस्त्र
पल कालिदास के वस्त्र-युगल के प्रतिनिधि हैं । इस म्यूजियम की यक्ष और देव प्रतिमाएँ सभी एक ही प्रकार के वस्त्र धारण किए हुए हैं जो वही युगल-वस्त्र -उत्तरीय और फेटे के रूप में बँधी हुई धोती-हैं। विवाह के समय भी यही दो वस्त्र पहने जाते थे परंतु अंतर इतना अवश्य था कि वे साधारण रूई के सूत के नहीं बल्कि रेशम के बने होते थे। ग्रीष्म ऋतु में पहने जानेवाले सुंदर, सुचिक्कण और पतले रेशमी वस्त्र श्रीमानों को बड़े ही प्रिय थे। एक प्रकार का रेशमी वस्त्र चीनांशुक' कहलाता था जो सदा की भाँति तब भी उत्पन्न करनेवाले चीन देश से आता था।
वख कई प्रकार की बनावट के होते थे--कोई श्वेत (धौत ), कोई लाल ( काषाय ), कोई नीला, कोई कृष्ण ( उत्तरीय ) और कोई पीत। कभी कभी वखों को, उनमें हंसों की आकृति बनाते हुए, बुनते थे ( हंसचिह्नदुकूलवान )। मथुरा म्यूजियम की एक प्रतिमा के वस्त्रों में इसी प्रकार के हंस-चिह्नों की छाप दिखाई देती है। यह दुकूल वस्त्रों का ही उदाहरण है। हमें वर को पोशाक में एक लंबे वस्त्र ( लंबिदुकूलधारी) का उल्लेख मिलता है जिसका तात्पर्य कदाचित् एक रेशमी चादर से था। यद्यपि हमें ऊनी वस्त्रों का स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता फिर भी ऊर्णा का उल्लेख पाता है। ऊर्णा के सूत से ही वर-वधू के 'कौतुकहस्तसूत्रम् २ अथवा विवाह-कंकण प्रस्तुत किए जाते थे। इससे सिद्ध होता है कि शीतकाल की अतिशय सर्दी से बचने के लिये भारतीय ऊनी वस्त्रों का भी प्रयोग करते
(१) कुमार०, ७, ३ । अभि० शाकु., १, ३३ । (२) वही, ७, २५ ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com