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________________ भारतवर्ष की सामाजिक स्थिति ४७७ गुरुजनों के सम्मुख भारतीय स्त्री बिना अवगुंठन ( घूँघट ) के निकलने में सकुचाती थी, क्योंकि यह एक प्रकार की उच्छृंखलता होती । यह प्रथा भारतवर्ष में आज तक सुरक्षित है । १ घर से बाहर जाते समय स्त्रियाँ अपने शरीर को एक चादर से ढक लेती थीं। एक स्थल पर एक वक्तव्य मिलता है - " वह अव. गुंठनवती कौन है जिसके शरीर का सौंदर्य पूर्णतया दर्शित नहीं है ?" एक अन्य प्रसंग में कहा गया है- "अपनी लज्जा क्षण भर के लिये दूर करो और अवगुंठन हटा दो२ ।” कार्यवश सार्वजनक स्थानों में जानेवाली स्त्रियों के प्रति कोई नियंत्रण नहीं था । वे न केवल विवाह आदि अवसरों पर पड़ोसियों, संबंधियों और अपने राजा के घर जाकर उत्सव में सम्मिलित होती थीं बल्कि प्रायः साधारण त्रियाँ अपने ईख आदि के खेत भी रखाती थीं और उस समय एक साथ मिलकर (कोरस में) यश-कीर्ति संबंधी गाने गाती थीं । भारतवर्ष जैसे उष्ण देश में वस्त्रों की बड़ी आवश्यकता नहीं थी, फिर भी कालिदास के ग्रंथों से वस्त्रों के प्रति हमें जो संकेत उपलब्ध होते हैं उनसे हमारे ऊपर गहरा प्रभाव पड़ता वेशभूषा – वस्त्र है । गर्मियों में लोग बहुत थोड़े कपड़े पहनते थे और उष्णता के कारण बहुत पतले और चिकने कपड़े तैयार किए जाते थे । इसी कारण कपड़ों के काट और उनकी सिलाई में हमें बहुत विकास नहीं मिलता । पुरुष और स्त्रियों के भिन्न भिन्न वस्त्रों का वर्णन अलग अलग ही ठोक जँचता है इसलिये ऐसा ही करेंगे । कालिदास के ग्रंथों से पता चलता है कि पुरुष एक जोड़ा वस्त्र पहनते थे । इस जोड़े में से एक उत्तरीय और दूसरा अधोवस्त्र रहता (१) का स्विदवगुण्ठनवती नातिपरिस्फुटशरीरलावण्या । मध्येत पोधनानां किसलयमिव पाण्डुपत्राणाम् ॥ अभि० शाकुं०, २,१३ । ( २ ) वही । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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