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________________ भारतवर्ष की सामाजिक स्थिति वस्त्र धारण करती थी जो शरीर में बिलकुल ठीक होता था और बहुत लटकता नहीं था। वर भी इसी प्रकार दुकूल का जोड़ा, अर्ध्व और अधोवस्त्र धारण करता था। दोनों आभूषण पहनते थे। वधू स्तनांशुक और साड़ी पहनती थी। विवाह की विधियों के समाप्त हो जाने के बाद ही पत्नी पति के साथ उसके घर चली जाती थी। पिता के गृह में विवाहानंतर . वधू का वास बड़ा अनुचित समझा जाता था। पतिगृह-गमन " जो स्त्री पति का घर छोड़कर पिता के घर में वास करती थी वह समाज-नीति के विरुद्ध आचरण करनेवाली समझी जाती थी। पिता के घर रहती हुई स्त्री पत्नीत्व के आदर्श से गिर जाती थी और इसके विरुद्ध पति के घर दासी-रूप में रहती हुई भी वह प्रशंसा के योग्य समझी जाती थी। कवि ने अपने एक पात्र के मुख में निम्न उद्धृत वक्तव्य रखते हुए एक बड़े अंतदर्शी, समाजशास्त्री और सुधारक का परिचय दिया है-"पितृगृह में वास करनेवाली पतिव्रता को भी लोग संदेह की अन्यथा दृष्टि से देखते हैं अत: पति की अप्रिया होने पर भी वधू के संबंधी उसका पतिगृहनिवास ही पसंद करते हैं।” इसी प्रकार खियों में स्वतंत्रता एक अक्षम्य अपराध समझा जाता था (किं पुरोगे स्वातन्त्र्यमवलम्बसे)। इन्हीं सब बातों के कारण शायद वधू को विवाह के बाद पति बिदा कराकर अपने साथ लाता था। (१) यदि यथा वदति तितिपस्तथा स्वमसि कि पितुरुत्कुलया त्वया। मथ तु वेत्सि शुचिव्रतमात्मक: पतिकुले तव दास्यमपि क्षमम् ॥-अमि० शाकु०, ५, २० (२) सतीमपि ज्ञातिकुलैकसंश्रयां जनोऽन्यथा भर्तृमति विशङ्कते । अतः समीपे परिणेतुरिष्यते प्रियाप्रिया वा प्रमदा स्वबन्धुभिः ॥-वही, १७ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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