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भारतवर्ष की सामाजिक स्थिति
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गांधर्व विवाह
उधर सुंदर स्थानों में विचरण करने चले गए' । यह आधुनिक पाश्चात्यों के विवाहानंतर के honeymoon की भाँति प्रतीत होता है । इस प्रकार प्राजापत्य विवाह की विधियाँ संपन्न होती थीं । गांधर्व विवाह आठ प्रकार के विवाहों में से एक है । इसका वर्णन स्मृतियों में आता है । इस विवाह के सिद्धांत के अनुसार पारस्परिक प्रेम और आकर्षण के परिणामस्वरूप युवा और युवती पुरुष - स्त्री पति-पत्नी के संबंध-सूत्र में बँध जाते थे । इस प्रकार के विवाह में किसी पक्ष के संबंधियों की राय की आवश्यकता नहीं थी । इसमें दोनों की केवल पारस्परिक अनुमति ही पर्याप्त थी । बल्कि पीछे से और संबंधियों की भी अनुमति मिल जाया करती थी । इसको हिंदू व्यवहार (Law) की सत्ता भी स्वीकार करती थी । इस प्रकार के विवाह का उदाहरण अभिज्ञान शाकुंतल नाटक में मिलता है। दुष्यंत और शकुंतला का विवाह गांधर्व - रीत्यनुसार ही हुआ था । एक स्थान पर कहा भी गया है- “ इस विषय में उसने अपने बड़ों की अपेक्षा नहीं की, न तुमने ही उसके संबंधियों से किसी प्रकार की अनुमति ली । जो प्रत्येक ने अपने आप किया है उस विषय में कोई अन्य उनसे क्या कहे ? ?"
संभव है, कालिदास के समय तक गांधर्व विवाह की रीति समाज में क्षम्य रही हो, जैसा कि निम्न उद्धरण से विदित होता है"राजाओं और ऋषियों की बहुतेरी कन्याओं ने गांधर्व रीति से विवाह किया है और बाद में उनको उनके बड़ों ने बधाई दी है३ ।”
(१) कुमार, 51
(२) नापेचिता गुरुजनोऽनया न त्वयापि पृष्टो बन्धुः ।
एकैकस्य न चरिते किं वनस्वेक एकस्य ॥ श्रभि० शाकुं०, ५, १६ । ( ३ ) गान्धर्वेण विवाहेन बह्वयः राजर्षि कन्यकाः ।
श्रूयन्ते परिणीतास्ताः पितृभिश्चाभिनन्दिताः ॥ - वही, १२० ॥
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