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भारतवर्ष की सामाजिक स्थिति अपनी वेणी-रचना' ,चरण-रंजन , शलाका द्वारा नेत्ररंजन और नीवी-बंधन आदि क्रियाओं में व्यस्त होती हुई भी खिड़कियों पर दौड़ गई। तोरण-पताकाओं से सजाए राजमार्ग पर जब जलूस पहुँचा तब उस पर मंगलमय अक्षत फेंका गया । वर अपनी सवारी से उतरकर द्वार पर बैठा जहाँ उसकी पूजा करके उसका स्वागत किया गया और उसको सरत्न अर्घ्य और मधु तथा गव्य प्रदान किया गया। फिर उसे नवदुकूल का जोड़ा पहनने के लिये दिया गया। साथ ही पुरोहित लोग मंत्र पढ़ रहे थे। फिर उसे विनीत अवरोधरक्षक वधू के समीप ले गए और पुरोहित ने उसके हाथ पर वधू का हाथ रखकर पाणिग्रहण कराया । अब शिव और पार्वती की संकेत-प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करके पूजी गई । फिर वरवधू ने, पुरोहित के आदेशानुसार, अग्नि की तीन बार परिक्रमा की और वधू ने अग्नि में अक्षत डाले । तदनंतर पुरोहित ने
(१) कुमार०, ७, १७ । (२) वही, ७, २८ । (३) वही, ७, ५६ । (४) वही०, ७, ६० । (५) वही, ७, ६३ । (६) वही, ७, ७०-७१। (७) तत्रेश्वरो विष्टरभाग्यथावत्सरत्नमयं मधुमच्च गव्यम् । नवे दुकूले च नगोपनीतं प्रत्यग्रहीत्सर्वममन्त्रवर्जम् ॥
-वही, ७, ७२। (८) वही, ७,७३। (8) वही, ७, ७६-७८ । (१०) वही, ७, ७८ । (११) तो दम्पती त्रिः परिणीय वह्निमन्योन्यसंस्पर्शनिमीलितादौ । स कारयामास वधूं पुरोधास्तस्मिन्समिद्धाधिषि लाजमोक्षम् ॥
-वही, ७, ८०। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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