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नागरीप्रचारिणी पत्रिका लगाया और उसके हाथ में ऊर्णामय सूत्र बाँधारे । फिर कुलदेवता को प्रणाम कर लेने के पश्चात् वह बड़ी-बूढ़ियों को उच्चता के क्रम से प्रणाम करने गई और उन्होंने आशीर्वाद दिया-अखण्डितं प्रेम लभस्व पत्यु:३ । फिर उसे अन्य संबंधियों ने आशीर्वाद दिया।
इसी प्रकार वर भी अपने घर में माता और अन्य स्त्रियों द्वारा वरोचित वस्तुओं से सजाया गया । उसने मस्तक, ग्रोवा, भुजा और कर्ण आदि में आभूषण धारण कराए गए। फिर 'हंसचिह्नदुकूलवान्।५ होकर उसने हरिताल का तिलक लगाया और दर्पण के सम्मुख जा खड़ा हुआ।७ तदनंतर वरपक्ष सुवाद्यध्वनि के साथ साथ वधू के नगरद्वार पर पहुँचा । तब वधूपक्ष के लोग अपने संबंधियों सहित
आभूषणों से सुसज्जित होकर गजारूढ़ हो वरपक्ष के स्वागत के लिये आए। नगरद्वार खुला हुआ था। द्वार में घुसते ही वरपक्ष पर पुष्पवर्षा की गई। नगर की स्त्रियाँ घरों की छतों पर चढ़कर वरपक्ष को देखने लगी और जलूस पर उन्होंने पुष्प-वर्षा की। जलूस को देखने की व्यग्रता इस भौति थी कि स्त्रियाँ
(१) कुमार०, ७, २३ । (२) वही, ७, २४ । (३) अखण्डितं प्रेम लभस्व पत्युरित्युच्यते ताभिरुमा स्म नम्रा । तया तु तस्याध शरीरभाजा पश्चात्कृताः स्निग्धजनाशिषोऽपि
-वही, ७, २८ । ( ४ ) वही, ७, ३० । (५) वही, ७, ३२ । (६) वही, ७, ३३ । (७) वही, ७, ३६ । (८) वही, ७, ५०। (१) वही, ७, १२। (१०) प्रावेशयन्मन्दिरमृद्धमेनामगुल्फकीर्णापणमार्गपुष्पम् ।
-वही, ७, १५। (११) वही, ७,५६ ।
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