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भारतवर्ष की सामाजिक स्थिति ४६१ -रत्नों से सुशोभित थे । वहाँ वह पूर्व की ओर मुख करके बैठी२ । फिर उसके शरीर को धूप से सुखाकर बालों को पुष्पों से सजाया
और सुगंधित दूर्वास्रज से उसका सिर परिवेष्टित किया गया । तदनंतर श्वेत अगुरु को पीत गोरोचन से मिश्रित करके उससे उसके शरीर पर सुंदर छोटी छोटी पंक्तियों की प्राकृतियाँ चित्रित की गई। गोरोचन और लोध्रचूर्ण द्वारा उसके कपोलों को रंगकर कानों के ऊपर से जई के गुच्छे लटकाए गए और अधरोष्ठ हल्के रंग से रंगे गए। उसके चरण महावर द्वारा रँगे गए और नेत्रों में अंजन लगाया गया । उसकी ग्रोवा और बाँहों को रत्नजटित बहुमूल्य प्राभूषणों से विभूषित किया गया । अन्य अंगों पर भी उसने स्वर्ण के आभूषण धारण किए। फिर इस प्रकार विवाह-शृंगार समाप्त कर वह दर्पण के सम्मुख खड़ी हुई। तदनंतर उसकी माता ने श्राद्र हरिताल और मनःशिला को उँगली से लेकर उसके ललाट पर स्वर्ण के रंग का विवाह-दीक्षा का तिलक
(1) कुमार०, ७, ११। (२) वही, ७, १३ । (३) वही, ७, १४ । (४) विन्यस्तशुक्लागुरु चक्ररङ्ग गोरोचनापन विभक्तमस्याः। सा चक्रवाकाङ्कितसैकतायाघिस्रोतसः कान्तिमतीत्य तस्थौ ॥
.-वही, ७, १५। (५) वही, ७, १७ । (६) रेखाविभक्तः सुविभक्तगात्र्याः किचिन्मभूच्छिष्टविमृष्टरागः। कामप्यभिख्यां स्फुरितैरपुष्यदासबलावण्यफलोऽधरोष्ठः ॥
-वही, ७, १८। (७) वही, ७, २०। (८) वही, ७, २१ । (१) वही। (१०) वही, ७, २२॥
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