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________________ भारतवर्ष की सामाजिक स्थिति ४५५ स्वयंवर कन्या का पिता अथवा भाई स्वयंवर में स्वयं आने के लिये अथवा अपने युवराज को उसमें भाग लेने के लिये भेजने के अर्थ राजाओं को निमंत्रण भेज देता था' । राजा लोग अपनी सेनाओं और शिविरों को साथ लेकर स्वयंवर के लिये प्रस्थान करते थे । कन्या का पिता अपने नगर के द्वार पर इनका स्वागत करता था रे । फिर इन्हें राजप्रासाद में ले जाता था जिसका द्वार पूर्ण कुंभ ४ जैसी सुंदर मंगलवस्तुओं से सुशोभित रहता था । दूर दूर के अनेक राजा वधूविजय के निमित्त परस्पर ईर्ष्यालु हृदय से वहाँ उपस्थित होते थे । प्रातःकाल वंदीजन आकर इन राजाओं को इनकी वंशप्रशस्ति सुना सुनाकर जगाते थे । तदनंतर राजा लोग स्वयंवर के अखाड़े में सुंदर मंचों पर जाकर बैठते थे । ये मंच कुछ ऊँचाई पर बड़े दामों के बने हुए होते थे जिन तक सुंदर सोपानमार्ग से पहुँचते थे । इन मंचासनों में रत्न लगे हुए होते थे । ये ऊपर से रंग-बिरंगे आच्छादनों से ढके हुए होते थे । इन्हीं मंचों पर बहुमूल्य आभूषण धारण किए हुए राजा लोग विराजमान होते थे । तदु(१) श्रथेश्वरेण क्रथकांशकाना स्वयंवरार्थं स्वसुरिन्दुमत्याः । श्राप्तः कुमारानयनोत्सुकेन भोजेन दूता रघवे विसृष्टः ॥ - रघु०, १, ३६ । ० (२) तस्येापकार्या रचितोपचारा । - वही, ५, ४१ । ( ३ ) तं तस्थिवांसं नगरोपकण्ठे तदागमारूढगुरुप्रहर्षः । — वही, १, ६१ । ( ४ ) प्राग्द्वारवेदिविनिवेशितपूर्णकुम्भाम् । – वही, १,६३ । (५) तत्र स्वयंवर समाहृतराजलोकम् । - वही, ५, ६४ । ( ६ ) वही, १, ७५ । ( ७ ) स तत्र मञ्च षु मनेाज्ञवेषान्सिंहासनस्थानुपचारवत्सु । - वही, ६, १ । < ८) सोपानपथेन मञ्चम् । वही, ६, ३ । ( १ ) परार्ध्य वर्णास्तरणोपपचमासेदिवान् रत्नवदासनं सः । वही, ६, ४ । ( १. ) वही, ६, ६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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