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________________ ४५४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका (लताप्रतानोग्रथितैः स केशैः) । जब गाय चलती थी दिलीप भी चलता था, जब वह खड़ी होती थी वह भी खड़ा होता था, जब वह बैठती थी वह भी बैठता था, जब वह जल पीती थी वह भी जलपान करता था इस प्रकार उसका कार्यक्रम गाय की छाया के अनुरूप गाय का ही एक प्रकार से था। वह अपने रक्ष्य के रक्षक और अभिभावक की भाँति उसकी रक्षा के अर्थ आवश्यकता के अनुसार अपने प्राणों तक की बाजी लगा सकता था । वर्णाश्रम-धर्म को महत्त्व देनेवाले समाज में विवाह-क्रिया का उचित रीति से संपादन अनिवार्य ही था। कालिदास के ग्रंथों से हमें तीन प्रकार कं विवाहों का ज्ञान होता विवाह है। वे इस प्रकार हैं-(१) स्वयंवर , (२) प्राजापत्य और ( ३) गांधर्व । स्वयंवर में कन्या अपने पति का वरण स्वयं करती थी। इसका प्रमाण हमें रघुवंश महाकाव्य के छठे सर्ग में वर्णित इंदुमती के स्वयंवर से प्राप्त होता है। प्राजापत्य का उदाहरण कुमारसंभव के अंतर्गत शिव और पार्वती के विवाह में मिलता है और गांधर्व विवाह का संकेत अभिज्ञान-शाकुंतल के दुष्यंत और शकुंतला के प्रेम संबंध में किया गया है। अब हम नीचे प्रत्येक का अलग अलग वर्णन करते हैं (3) जताप्रतानाद्ग्रथितैः स केशैरधिज्यधन्वा विचचार दावम् । -रघुवंश, २, ८ । (२) वही, २, ६ । (३) विनाश्य रक्ष्यं स्वयमयतेन ।-वही, २, ५६ । (४) वही, २, ५१ और २६ । (१) वही, ६। (६)कुमारसंभव, ७ । (७) अभिज्ञान-शाकुन्तल, ३ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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