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नागरीप्रचारिणी पत्रिका पांडेयजी का अभिमत, कि 'ना-नारद इक जुलहे सों हारा... सैकरा भरई' में "सैकरा' कबीर की शतायु की ओर संकेत करता है, विचारपूर्ण है और "सैकरा भरई" यदि जुलाही पेशे की किसी क्रिया की ही ओर संकेत नहीं करता तो वह कबीर की जीवनी के एक तथ्य के निश्चय में अत्यंत सहायक होगा। हाँ, यह कहना कि
बारह बरस बालपन खोयो, बीस बरस कछू तप न किया । तीस बरस कै राम न सुमिरयौ, फिरि पछितान्या बिरध भयो ।
कबीर-ग्रंथावली, पृ० १७०, २४३, ३०६, १९१ इसमें सामान्य कथन न करके कबीर ने अपने ही बाल्यकाल, यौवन, बुढ़ापे इत्यादि का विस्तार बताया है, अतिमात्र है।
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