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________________ कबीर का जीवन-वृत्त ४४६ इस सकने की आशा न थी, फिर हिंदू उससे क्या आशा रखते । लिये उन्होंने मजाक का आसरा लिया । जहाँ कबीर दिखाई दिए वहीं " अरर कबीर" के साथ बुरी बुरी गालियों की झड़ी लगने लगी । काशी में कबीर की खूब जोर की हँसी हुई थी, इसका उल्ल्लेख कबीर-पंथियों ने कई पदों में किया है । 'निर्गुण बानी' नामक एक संग्रह में दो-तीन बार 'काशी में हाँसी कीन्हीं' का उल्लेख है । धर्मदास की 'शब्दावली' से मगहर के संबंध में जो पद ऊपर उद्धृत किया गया है, उसमें भी स्पष्ट लिखा है--- 'ब्राह्मण और सन्यासी तो हाँसी कीन्हिया' । उक्त संग्रह के दो-एक पदों के अनुसार इस हँसी का अवसर भी कबीर ही ने प्रस्तुत कर दिया था । श्रद्धालुओं की श्रद्धा से तंग व्याकर वे एक बार वेश्या को बगल में लेकर काशी की गलियों में घूमे थे । परंतु उसका जो घोर परिणाम हुआ उसके लिये वे तैयार नहीं थे । सभ्य लोगों ने सभ्य मजाक किया होगा, असभ्यों ने भद्दा । यह भी नहीं समझना चाहिए कि कबीर प्रकारांतर से हिंदुओं में इस्लाम का प्रचार कर रहे थे, इस्लाम का विरोध उन्हें अभीष्ट ही नहीं था। उनकी फटकार हिंदू-मुसलमान दोनों के लिये थी; दोनों के ग्रंथविश्वासों तथा कर्मकांड इत्यादि की उन्होंने समान रूप से निंदा की है । हिंदुओं के प्रति अधिक और मुसलमानों के प्रति कम विरोधात्मक उक्तियों का कारण यह है कि कबीर की दार्शनिक प्रवृत्ति हिंदुओं के सर्वथा मेल में थी, इसलिये वे अधिकतर उन्हीं की संगति में रहा करते थे और स्वभावत: उन्हीं को अधिक समझाते-फटकारते थे, मुसलमानों से बहस-मुबाहसा करने का उन्हें मौका ही कम मिलता था । अतएव निषेधात्मक होने पर भी डाक्टर त्रिपाठी का उक्त मत अत्यंत मूल्यवान है और कबीर के समय को निश्चित करने में बड़ी सहायता देता है । २६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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