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________________ कबीर का जीवन-वृत्त ४४७ वाणी की "लड़ो मत, पहले कफन उठाकर देखो कि तुम लड़ किस चीज के लिये रहे हो”; कफन उठाकर देखा गया तो शव की जगह फूल पाए गए जिनको हिंदू मुसलमान दोनों ने बाँट लिया। इस कहानी का उल्लेख कर पांडेयजी ने बाबू श्यामसुंदरदासजीसंपादित कबीर-ग्रंथावली की भूमिका में से इसके संबंध का यह अवतरण दिया है-"यह कहानी भी विश्वास करने योग्य नहीं है परंतु इसका मूल भाव अमूल्य है" और इस पर टिप्पणो को है- "हमारी समझ में यह बात नहीं आती कि कबीर की उस (?) प्रात्मा ने इस प्रकार की प्राकाशवाणी कर, लड़ो मत, कफन उठाकर देखो, कौन सा अमूल्य भाव भर दिया है।" भाव तो बिलकुल स्पष्ट है पर यही समझ में नहीं आता कि पांडेयजी की समझ में वह क्यों नहीं पाता। पांडेयजी ने अगर इस प्रसंग को ध्यान से पढ़ा होता और 'पर हिंदू-मुसलिम-ऐक्य के प्रयासी कबीर की प्रात्मा यह बात कब सहन कर सकती थी' इस कथन पर दृष्टि डाली होती तो पांडेयजी को कहानी के अमूल्य मूल-भाव के समझने में देर न लगती। लेखक का अभिप्राय स्पष्ट है। उनका अभिप्राय है कि यह चमत्कारी कहानी विशेष रूप से यह दिखलाने के लिये गढ़ी गई है कि कबीर की प्रात्मा ने मृत्यु के बाद भी हिंदू-मुसलिम-विरोध के निराकरण का प्रयत्न नहीं छोड़ा। हिदू-मुस्लिम ऐक्य की आवश्यकता का अमूल्य मूल्य आज भी अनुभूत हो रहा है। __ पृ० ५०२ में पांडेयजी ने 'जिंद' शब्द पर विचार करते हुए लिखा है कि धर्मदास की शब्दावली ( बेल्वेडियर प्रेस ) के संपादक महोदय ने जिद का अर्थ 'बंधोगढ़-निवासी बनिये' माना है, जो सर्वथा अमान्य है। परंतु वस्तुतः यह उक्त संपादक महोदय के ऊपर अन्याय है। उन्होंने ऐसा कुछ नहीं माना है। 'बंधोगढ़ के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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