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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
बाह्मन और सन्यासी, तो हासी कीन्हिया । कासी से मगहर आये कोई नहि चीन्हिया ॥ मगहर गाँव गोरखपुर जग में आइया । हिंदू तुरक प्रमोधि के पंथ चलाइया ॥ - शब्दावली, पृ० ३, ४, शब्द है ।
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जग में उनका आना जीवों के उद्धार के लिये हुआ था और हुआ था गोरखपुर के पास मगहर गाँव में, काशी में ता वे प्रकट हुए थे । उससे पहले उनकी प्रसिद्धि नहीं हुई थी । उनकी प्रसिद्धि का कारण हुआ स्वामी रामानंद का चेताना ( काशी में हम प्रगट भए हैं रामानंद चेताए ) अर्थात् उनका कबीर के वास्तव स्वरूप को पहचानना जिससे उन्होंने उन्हें बेहिचक वैष्णव मंडली में सम्मिलित कर लिया और वे कबीरदास कहे जाने लगे । परंतु और ब्राह्मणों तथा संन्यासियों ने उन्हें नहीं पहचाना और उनकी हँसी में तत्पर रहे। इसलिये वे काशी से मगहर चले आए । 'कोई नहिं चीन्हिया' का अभिप्राय यह भी हो सकता है कि वे काशो से मगहर ही क्यों आए, इसका कारण किसी को न मालूम हुआ; मगहर वे इसलिये आए कि वहीं उनका जन्म हुआ था । इस अवसर पर मगहर ही को क्यों उन्होंने पसंद किया इसका यह काफी अच्छा समाधान है । पांडेयजी ने भी अपने लेख में इस पद का एक अंश उद्धृत किया है परंतु उसके 'रहस्योद्घाटन' की और उन्होंने वैसी प्रवृत्ति नहीं दिखाई है जैसी उनके कैड़े के विद्वान से आशा की जा सकती है ।
लगे हाथों पांडेयजी की एक उलझन को सुलझा देना तथा उनकी एक गलती का निराकरण कर देना भी जरूरी जान पड़ता परंपरागत जनश्रुति है, अपने शव के लिये हिंदू मुसलमानों में खून-खराबी की संभावना देखकर कबीर की आत्मा ने आकाश -
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