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कबीर का जीवन-वृत्त
४४५ कारण मगहर से अभी उनके मन का समन्वय न हो पाया था । जितना अधिक वे इस बात का ऐलान करते हैं कि काशी का मुक्तिमार्ग में कुछ विशेष महत्व नहीं, उतनी ही अधिक दृढ़ता से वह उनके हृदय में बैठी हुई दिखाई देती है । इसी से अनजान में उनके मुँह से ऐसी ही बातें निकलती हैं माना अभी वे काशी ही में हो । अगर पाठ-परिवर्तन ही मानना अभीष्ट हो तो 'जाई' का 'आई' बन जाना क्यों न माना जाय ? यद्यपि मैं स्वयं यह नहीं मानता ।
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पांडेयजी ने यह भी दलील पेश की है – 'जहाँ तक हमें इतिहास का पता है, उस समय मगहर में मुसलमानों का निवास न था । ' मुझे इतिहास का बहुत कम पता है, परंतु जाननेवाले बतलाते हैं कि उस समय गोरखपुर के आसपास का शासन नवाब बिजलीखाँ पठान के हाथ में था । गाजी मियाँ सालार जंग तो बहुत पहले बहराइच तक आ पहुँचे थे। फिर उस समय मगहर में मुसलमानों के बसने में कौन सी असंभवता है ?
इन सब बातों को देखते हुए यदि कोई यह माने कि कबीर के जन्म-स्थान के लिये काशी का दावा संदेहास्पद है तो अनुचित नहीं । यह बात ठीक है कि 'न जाने कितनी बार कबीर ने अपने को काशी का जुलाहा कहा है' पर इससे यह कहाँ निकलता है कि वे पैदा भी वहीं हुए थे । आजकल अपने आपको बनारसी कहनेवालों की संख्या बेढब बढ़ रही है पर यह इस बात का प्रमाण थोड़े ही है कि वे जनमे भी बनारस ही में हैं ।
मेरा तो विचार है कि कबीर का मगहर ही में जन्म लेना अधिक संभव है । कबीर के शिष्य धर्मदास भी यही कहते जान पड़ते हैं। उनका कहना है
हंस उबारन सतगुरु जग में श्रइया । प्रगट भए कासी में दास वहाइया ॥
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