SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 460
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कबीर का जीवन-वृत्त ४४३ विद्वानों की मालोचना से कई लाभ होते हैं। जहाँ पांडेयजी के 'वृत्त' से मुझे पता लगा है कि मेरा कौन सा मत पुष्ट है, वहीं मेरे एक मत के 'अग्रिम खंडन' द्वारा यह बतलाकर भी वे मेरे धन्यवाद के भाजन हुए हैं कि कहाँ मुझे अधिक विस्तार के साथ लिखने की आवश्यकता है। कबीर के जन्म-स्थान के संबंध में विवेचन करते हुए पांडेयजी ने लिखा है-"कुछ लोगों की धारणा है कि कबीर का जन्म-स्थान काशी नहीं, संभवतः मगहर था ।" उनमें से एक मैं भी हूँ। पांडेयजी का संकेत विशेषकर मेरे ही निबंध की ओर है। मगहर के पक्ष में प्रमाण उन्होंने उसी में के दिए हैं। इस मत का प्रधान प्रमाण तो 'प्रादि ग्रंथ' में दिया हुमा कबीर का वह पद है जिसमें उन्होंने कहा है-'पहिले दरसन मगहर पायो फुनि कासी बसे प्राई। इससे स्पष्ट है कि कबीर को भगवदर्शन मगहर में हुआ था और इसके बाद वे काशी में आ बसे थे। इससे यह भी संभव है कि कबीर का जन्म मगहर में हुआ हो। काशी में कबीर का जन्म हुआ था, इस बात को तो यह पद अवश्य संदेह में डाल देता है। परंतु पांडेयजी का मत है कि ऐसा समझना 'सावधानी' से काम न लेना है। क्योंकि मगहर में बैठे बैठे वे 'कासी बसे आई' कैसे कह सकते हैं-'आई' की जगह 'जाई' होना चाहिए था। उनकी समझ में, इस पंक्ति में, मगहर और काशी का स्थान बदल गया है। इसका पाठ होना चाहिए–'पहिले दरसन कासी पायो फुनि मगहर बसे प्राई। 'प्रकृत पद्य' उनके लिये वह है जिसका अनुवाद मेकालिफ ने इस प्रकार किया है-"I first saw you at Kasi and then came to reside at Magahar " यह पंक्ति मेरी है जिसमें मैंने मेकालिफ का अभिप्राय मात्र दिया था। मेकालिफ के शब्द ये हैं- I first obtained a sight of thee in Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy