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________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय ४१ पाढ़ी पीछे अचलदास से सुलतान होशंग गोरी ने हिजरी सन् ८३० अर्थात् वि० सं० १४८३ या सन् १४८६ ई० में गैंगरौनगढ़ छीन लिया। यह भी कहा जाता है कि सं० १५०५ (सन् १४४८ ई०) में प्रचलदास मुसलमानों के साथ युद्ध में काम आए। इन सब बातों को ध्यान में रखकर जनरल कनिंघम ने पीपा का समय सं० १४१७ से १४४२ (ई० सन् १३६० से १३८५) तक माना है। सं० १२५० से १५०५ तक के २५५ वर्षों में पीपाजी के वंश में १० पीढ़ियाँ हुई जिससे प्रत्येक पीढ़ी के लिये लगभग २५ वर्ष ठहरते हैं। इस हिसाब से १४२० से १४५५ तक उनका समय मानना भी अनुचित नहीं । यह सामान्यतया उनका राजत्व-काल है। उनका जीवन काल लगभग सं० १४१० से १४६० तक मानना चाहिए। सधना खटिक था। बेचने के लिये मांस तौलते समय बटखरे की जगह शालिग्राम की बटिया रखता था। एक वैष्णव को यह देखकर बुरा लगा और शालिग्राम की बटिया माँगकर ले गया। रात में उसे स्वप्न हुआ कि भाई, तुम मुझे बड़ा कष्ट दे रहे हो। अपने भक्त के यहाँ मैं ( तराजू के ) झूले पर झूला करता था, उस सुख से तुमने मुझे वंचित कर दिया है। भला चाहो तो मुझे वहीं दे माओ। और वह दे पाया। धन्ना जाट था और राजपूताने के टाँक इलाके में धुअन गांव में रहता था। यह स्थान छावनी देवली से बीस मील की दूरी पर है। ___ सेन नाई था जो किसी राजा के यहाँ नौकर था। उसकी भक्ति की इतनी महिमा प्रसिद्ध है कि एक बार जब वह साधु-सेवा में लीन होने के कारण राजा की सेवा करने के लिये यथा-समय न जा सका, तब स्वयं भगवान् सेन का रूप धारण कर राजा की सेवा करने पहुंचे। (.) 'प्राकियालाजिकल सर्वे रिपोर्ट', भाग २, पृष्ठ २६१.१७ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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