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कबीर का जीवन-वृत्त
४४१ चाहिए। मुझे खेद है कि मेरे हिंदी रूपांतर में भी ये गलतियाँ रह गई हैं। __इस लेख में पांडेयजी को एक बहुत महत्वपूर्ण सूचना देने का अवसर मिला है। वह सूचना है यह कि गुरु गोरखनाथ ने 'हिंदू
और मुसलमानों की एकता की ओर भी ध्यान दिया था । यद्यपि पांडेयजी ने इसके कोई प्रमाण नहीं दिए हैं, तथापि यह नहीं समझना चाहिए कि यह बात निराधार है। मुझे खेद है कि मैं यथासमय पांडेयजी को इस बात का प्रमुख प्रमाण न दे सका, क्योंकि मेरे कागज-पत्र उस समय ऐसी गडबड हालत में थे कि उनमें से उन्हें ढूंढ़ निकालना कठिन था, और पांडेयजी अधिक समय तक ठहरना नहीं चाहते थे। प्रमाण नागरीप्रचारिणी पत्रिका में यथास्थान छपने के लिये भेज दिए गए हैं। परंतु पाठकों के लाभार्थ यहाँ भी दे दिए जाते हैं। गढ़वाल में प्रचलित झाड़-फूंक के मंत्रों में संतों और सिद्धों के संबंध में जो उल्लेख हैं उनका मैंने संग्रह किया है। पं० चंद्रबली के आग्रह से मैंने इस छोटे से संग्रह को उन्हें भी सुनाया था। इस संग्रह में गोरखनाथजी के संबंध में लिखा है-"हिंदू मुसलमान बालगुदाई दोऊ सहरथ लिये लगाई"२ जिससे पता चलता है कि गुरु गोरखनाथ के चेलों में हिंदू मुसलमान दोनों सम्मिलित थे। मुसलमानों की जिबह आदि की प्रथा को ध्यान में रख तथा उन्हें तलवार के बल पर राज्य-प्रसार करते देख गोरखनाथ ने किसी काजी से कहा था
मुहम्मद मुहम्मद न कर कानी मुहम्मद का विषम विचारं । मुहम्मद हाथि करद जे होती लोहे गढ़ी न सारं ॥ सबदै मारै सबद जिबावै ऐसा महमद पोरं ।
ऐसे भरमि न भूलो काजी सो बल नहीं सरीरं ॥ (.) ना० प्र० प०, भाग १४, अंक ४, पृ. ५०।। (२) वही, पृ० १५१ ।
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