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________________ ४४० नागरीप्रचारिणी पत्रिका उसका हवाला भी उनके लेख में गलत है । किंतु इसका दोष पांडेयजी के मत्थे मढ़ने का अन्याय मैं न करूँगा । 3 ये पंक्तियाँ थोड़े से पाठ भेद से सिखों के आदि ग्रंथ में, रैदास के और रजबदास के सर्वांगी में पीपाजी के नाम से दी गई हैं। आदि ग्रंथ में यह पाठ है जाकैईदि बकरीद कुज गऊ रे बधु करहि मानीग्रहि सेख सहीद पीरा ॥ जाकै बापि वैमी करी पूत ऐसी सरी तिहुँ रे लोक परसिव कबीरा ॥ और सर्वांगी में यह - जाके ईद कद, निन गऊ रे बध करै मानिए सेख सहीद पीरा । बापि वैसी की पून ऐन धरी नांव नवखंड परसिव कबीरा ॥ इन दोनों के प्राधार पर तथा कुछ संगति का ध्यान रखकर मैंने निर्गुण संप्रदाय पर अपने अँगरेजी निबंध में, जिसे पांडेयजी ने अपना 'वृत्त' लिखने के पहले माँगकर पढ़ लिया था, ऊपर का पाठ निर्धारित किया था । इससे आदि ग्रंथ के पाठ में विशेष परिवर्तन यह हुआ कि 'सरी' के स्थान पर 'घरी' हो गया और 'वैसी' के स्थान पर 'ऐसी' तथा गलती से 'सेख सहीद' में 'स' के स्थान पर 'श' । टाइपिस्ट की कृपा और मेरी असावधानी के कारण पाद-टिप्पणी का वह अंश भी छपने से रह गया था जिसमें मैंने पाठांतरों का निर्देश किया था । इसी से पांडेयजी धोखे में आ गए । अन्यथा उनकी सी निपुणता के व्यक्ति से ऐसी गलती होना संभव नहीं था पाद टिप्पणी में पांडेयजी ने आदि ग्रंथ की जो पृष्ठ संख्या दी है, वह भी गलत है और मेरे टाइपिस्ट की कृपा का फल है । पृष्ठ संख्या ६६८ न होकर ६८८ होनी ( १ ) दोनों पदों में पाठ-भेद के साथ भी यही दो पंक्तियाँ समान हैं । पदों के शेषांश बिल्कुल भिन्न हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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