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(१५) कबीर का जीवन-वृत्त [ लेखक–डाक्टर पीतांबरदत्त बड़थ्वाल, काशी ] नागरी-प्रचारिणी पत्रिका, भाग १४ की चौथी संख्या में श्रीमान् पं० चंद्रबली पांडेय का 'कबीर का जीवन-वृत्त' शीर्षक लेख पढ़कर बड़ा आनंद हुआ। पं० चंद्रबली सदृश विद्वान् को कई बातों में अपने से सहमत देख किसे आनंद न होगा। विशेष हर्ष मुझे इस बात का है कि मेरे जिस मत को बड़े बड़े विद्वान् मानने को तैयार नहीं उसके मुझे एक जबर्दस्त समर्थक मिल गए हैं। पांडेयजी भी मानते हैं कि निम्न-लिखित पंक्तियों के आधार पर कबीर का मुसलमान कुल में उत्पन्न होना सिद्ध हो जाता है
जाके ईद बकरीद गऊ रे बध करहि मानियहि शेख शहीद पीरा । जाके वापि ऐसी करी, पूत ऐसी धरी तिहुँ रे लोक परसिध कबीरा ॥
कुछ विद्वान, जिनसे मैंने इस संबंध में परामर्श किया था, मुझसे इस बात में सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि कबीर को मुसलमान का पोष्य पुत्र मात्र मानने में भी ये पंक्तियों कोई अड़चन नहीं डालती। पर मेरा उत्तर है कि इन पंक्तियों के रचयितानों का अभिप्राय है कि भक्ति के लिये ऊँचे कुल में जन्म आवश्यक नहीं है। इससे सिद्ध है कि कबीर मुसलमान के पोज्य पुत्र नहीं, औरस पुत्र थे। इस मामले में पांडेयजी ने मेरा पक्ष ग्रहण किया है, इसलिये मुझे हर्ष होना स्वाभाविक ही है।
परंतु पांडेयजी के लेख में एक जरा सी गलती रह गई है। उन्होंने इन पंक्तियों को रैदास की बतलाया है, जो आदि ग्रंथ में दी हुई हैं। पर रैदास के वचन का वस्तुत: यह पाठ नहीं है।
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