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नागरीप्रचारिणी पत्रिका 'योगेश्वर कृष्ण' सूर्यकुमारी-ग्रंथावली (काँगड़ी) का प्रथम ग्रंथ है। यह श्रीकृष्ण का महाभारत से संकलित पुराणान मोदित ऐतिहासिक जीवन-चरित है। भाषा सरल और सजीव है। कर्मयोगी कृष्ण के सामाजिक और राजनीतिक जीवन की कोई प्रधान घटना छूटने नहीं पाई है। थोड़े में समस्त महाभारत का सार खींचकर इस प्रकार रख दिया गया है कि इसे बालभारत भी कह सकते हैं । उपयुक्त उद्धरणों और पाद-टिप्पणियों से ग्रंथ में एक विशेषता प्रा गई है। 'महाभारत का युद्ध-प्रकार और युधिष्ठिर की राज्य-प्रणाली' के समान कुछ प्रकरण यद्यपि कृष्ण-चरित से स्पष्टतया संबद्ध नहीं देख पड़ते तथापि उनसे ग्रंथ की उपादेयता बढ़ गई है। प्राचीन साहित्य और संस्कृति का विद्यार्थी उनसे बड़ा लाभ उठा सकता है। एक शब्द में पंथ सुंदर और संग्रहणीय है।
साधारण पाठक को इस ग्रंथ में एक अभाव खटकता है। न तो इसमें योगेश्वर का वह चमत्कारपूर्ण जीवन अंकित है जो बच्चों और भोले भक्तों के हृदय को द्रवित कर सके और न यहाँ कृष्ण का वह सरस और सलोना चित्र ही है जो भावुकों को प्राह्लादित कर सके। महाभारत से संकलित 'ऐतिहासिक जीवन-चरित' में यह प्रभाव रह जाना आश्चर्य की बात नहीं है। स्पष्ट ही इस चरित के नायक का संबंध न गीता से है और न भागवत से-वह महाभारत के राजनीतिक क्षेत्र का एक नेता मात्र है। 'योगेश्वर' का यह अर्थ कुछ संकुचित तथा अपूर्ण सा है। इतना होने पर भी यह ग्रंथ अनूठा है-हिंदी-वाङ्मय का एक रन है। हिंदी में ऐसे जीवनचरितों की बड़ी आवश्यकता है। इस ग्रंथ ने एक बड़े अभाव की पूर्ति की है।
पद्मनारायण प्राचार्य
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