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नागरीप्रचारिणी पत्रिका वर्ष के अनेक पुस्तकालयों में इसी प्रणाली का, थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ, अनुसरण किया जाता है। किंतु मेरे विचार से भारतवर्ष में इस प्रणाली का प्रचलित करने के पूर्व उसके भारतीयकरण की
आवश्यकता है। इस प्रणाली के अनुसार रखे गए अनेक वर्ग हमारी संस्कृति और विचार-धारा के विरुद्ध पड़ते हैं। प्रस्तुत सूची में ही तत्त्व-ज्ञानांतर्गत एक वर्ग मन और शरीर का रखा गया है। Dewey के अनुसार इस वर्ग के अंतर्गत मस्तिष्क-विज्ञान ( Mental pbysiology ), Afense-fitt (Mental derangements ), गुह्य-विद्या ( Occultism ), सम्मोहन-विद्या (Hypnotism ) आदि परिगणित होते हैं। वर्तमान सूची में इसी के अंतर्गत पातंजल योग-दर्शन एवं योग-संबंधी प्राधुनिक पुस्तकें भी रखी गई हैं। यह सत्य है कि योग-दर्शन में अधिकतर मन और शरीर के संबंध में ही विचार किया गया है, किंतु Jewex तथा भारतीय विचार-धारा के अनुसार उसे प्राच्य दर्शन-समूह के अंतर्गत रखना ही उचित है। इस सूची में कुछ पुस्तकों का वर्गीकरण तथा विषयो का शीर्षक बहुत ही भ्रमोत्पादक रखा गया है; यथा पृष्ठ ३११ में एक शीर्षक है-विनोदात्मक काव्य ( सर्व-साधारण)। साधारणत: पाठक इस शीर्षक के अंतर्गत ऐसे विनोदात्मक काव्य-थों को ढूँढेंगे जो विनोदात्मक काव्य के विशेष विभागों के अंतर्गत न पा सकते हों, किंतु पुस्तकें रखी गई हैं-'विनोद-रत्नाकर', 'वीरबल की हाजिरजवाबी' और 'चतुराई', 'विदूषक', 'गुदगुदी', 'चुहल', 'दिल की आग', 'हँसी के चुटकुले' आदि कहानीविषयक। साधारणत: लोग छंदोबद्ध रचनाओं को ही काव्य समझते हैं, किंतु उक्त सब पुस्तकें इसके विपरीत गद्य की हैं। इस विभाग के बाद ही 'विनोदपूर्ण आख्यायिका' का विभाग रखा गया है जिसमें 'मेरी हजामत', 'हँसी का गोलगप्पा', 'पढ़ो और हँसो',
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