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नागरीप्रचारिणी पत्रिका कभी कभी 'बार' के स्थान पर फारसी के 'दफा' या 'मर्तबा' शब्दों की सहायता से 'एक दफा', 'दो दफा', 'तीन मर्तबा', 'चार मर्तबा' इत्यादि शब्द बना लिए जाते हैं।
पूर्णाकबोधक संख्यावाचकों में अनेक शब्दों के दो दो रूप पाए जाते हैं, जैसे–चौतीस, चौतिस; पैंतीस पैंतिस; सड़सठ,
सरसठ इत्यादि। ये रूप-भेद भिन्न भिन्न शब्दों की अनेक
* प्रांतो के उच्चारण के कारण हो गए हैं । उदारूपता का कारण
हरणार्थ हम देख सकते हैं कि पूर्वी हिंदी में ह्रस्व उच्चारण की ओर प्रवृत्ति अधिक है, अत: खड़ी बोली के दीर्घमात्रा-युक्त शब्दों का भी उच्चारण, युक्तप्रांत के पूर्वी भाग तथा बिहार के निवासी ह्रस्व के समान कर देते हैं। धोरे धीरे साहित्यिक भाषा में उन शब्दों के चल जाने से अब अनेक शब्दों के दो दो रूप हो गए हैं।
संस्कृत के बहुत से संख्यावाचक तत्सम शब्दों का भी प्रयोग खड़ी बोली में बहुत अधिक होता है। पूर्णाकबोधकों में 'पञ्च', 'सप्त',
'अष्ट', 'द्वादश', षोडश', 'शव', 'सहस्र' और खड़ी बोली में संख्या-
" 'कोटि'; अपूर्णांकबोधको में 'अर्ध'; क्रमवाचको
र वाचक तत्सम शब्द
- में 'प्रथम', 'द्वितीय, तृतीय', 'चतुर्थ', 'पञ्चम', 'सप्तम', 'दशम' और तिथियों के प्रायः सभी नाम; तथा प्रावृत्तिवाचकों में 'द्विगुण', 'त्रिगुण' और 'चतुर्गुण' आदि तत्सम शब्द साहित्यिक खड़ी बोली में प्रायः लिखे जाते हैं।
खड़ी बोली के संख्यावाचक शब्दो की उत्पत्ति को देख चुकने पर विदित होता है कि विदेशी भाषाओं का प्रभाव खड़ी बोली के
संख्यावाचक शब्दों पर लगभग नहीं के ही विदेशी प्रभाव
___ बराबर पड़ा है; केवल फारसी के 'सिफर' तथा 'हज़ार' शब्द खड़ी बोली में पा गए हैं।
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