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खड़ी बोली के संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति ४२७ 'हिंदी-व्याकरण' में समुदायवाचक विशेषणों का वर्णन करते हुए लिखा है___ "पूर्णांकबोधक विशेषणों के आगे 'ओ' जोड़ने से समुदाय. वाचक विशेषण बनते हैं; जैसे-चार-चारों,दस-दसो, सोलहसोलहों इत्यादि।"
संख्यावाचक शब्दों के इस प्रसंग को समाप्त करने से पहले उनके संबंध की कुछ विशेष बातों की ओर ध्यान आकृष्ट होता है। मिस्टर फेलाग का कथन है कि अँगरेजी के Once, Twice और Thrice के पर्यायवाची एक एक शब्द खड़ी बोली में नहीं हैं। पर उनका यह कथन पूर्णत: सत्य नहीं है। जहाँ पर इन शब्दों का गुणावाचकों के समान प्रयोग होता है वहाँ खड़ी बोली में क्रमशः 'एक', 'दूना' और 'तिया' से काम लिया जाता है। और जहाँ इन शब्दों का क्रियाविशेषणों के समान प्रयोग होता है वहाँ खड़ी बोली में Once और Twice के लिये एक एक शब्द नहीं हैं।
पर 'Once' के लिये संस्कृत के 'एकदा' शब्द का प्रयोग किया जाता है। बैसवाड़ी के 'दाएँ' तथा 'दारी' ( एकु दाएँ, एकु दारी= एक बार) में संस्कृत के 'एकदा' शब्द का आभास मिलता है। बैस. वाड़ीमें तो 'दाएँ' और 'दारी' का सभी पूर्णाकबोधक शब्दों के साथ योग करके 'दुइ दाएं','तीनि दाएँ', 'बीस दारी', 'पचास दारी' इत्यादि शब्द बना लिए जाते हैं, पर खड़ी बोली में इस प्रकार के शब्द नहीं बनते । ऐसे शब्दों को बनाने के लिये उसमें संस्कृत के 'वारं' (सं० 'एकवारं', 'द्विवारं', 'चतुरं) प्रत्यय से आए हुए 'बार' शब्द का प्रयोग होता है; जैसे—'एक बार', 'दो बार', 'तीन बार' इत्यादि । 'बार' के योग से 'दो' और 'तीन' में कुछ विकार हो जाता है तथा 'बार' का 'बारा' रूप हो जाता है, और इस प्रकार 'दुबारा' और 'तिबारा' शब्द बन जाते हैं।
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