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नागरीप्रचारिणी पत्रिका लिये प्रायः 'एक' शब्द को संख्यावाचक शब्दों के पूर्व अथवा पश्चात् लगाते हैं; जैसे-'एक दस' या 'दस एक', 'सौ एक', 'चार एक', 'पाँच एक' इत्यादि।
'एक' की अनिश्चितता सूचित करने के लिये उसके पश्चात् आध का योग कर देते हैं जिसके फल-स्वरूप 'एक प्राध' या 'एकाध' बन जाता है। कभी कभी पूर्णांकबोधक संख्यावाचक शब्दों के साथ उनके ठीक ऊपर वाली संख्याओं के वाचक शब्दों का योग करके अनिश्चितता प्रकट की जाती है; जैसे-'तीन-चार', दस-ग्यारह' इत्यादि ।
अपूर्णाकबोधक शब्दों के पश्चात् कभी कभी उनके ऊपर के पूर्णांकबोधक संख्यावाचक शब्दों को मिलाने से अनिश्चितता सूचित की जाती है; जैसे-'डेढ़-दो', 'ढाई-तीन' इत्यादि। कभी कभी किसी संख्या की दसगुनी संख्या के वाचक शब्द के साथ किसी दूसरी संख्या की दसगुनी या पँचगुनी संख्या के वाचक शब्द का योग करके अनिश्चित संख्या का बोध कराया जाता है; जैसे-'दस-पाँच', 'दस-पंद्रह', 'पंद्रह-बीस', 'पचीस-तीस', 'पचास. साठ', 'सौ-सवा सौ', 'सौ-डेढ़ सौ', सौ-दो सौ' इत्यादि ।
नियमपूर्वक बने हुए शब्दों के अतिरिक्त अनिश्चित संख्याओं को सूचित करनेवाले कुछ शब्द मुहावरे से बन गए हैं जो किसी विशेष नियमानुसार नहीं हैं; जैसे-'दो-चार', 'पाँच-सात', 'पाठदस' इत्यादि। ___ कभी कभी 'ओ' प्रत्यय के प्रयोग से भी अनिश्चितता सूचित की जाती है; जैसे-'दंगल में बीसे कुश्तियाँ हुई', 'सभा में हजारों
आदमी थे। परंतु कभी कभी ठीक इसके विपरीत, 'श्री' प्रत्यय के द्वारा निश्चितता भी सूचित की जाती है; जैसे-'वेबीसों चोर पकड़ लिए गए', 'तीनों रोगी मर गए'। कभी कभी 'ओ' के द्वारा समुदाय का भी बोध होता है। श्रीयुत कामताप्रसाद गुरु ने अपने
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