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खड़ी बोलो के संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति ४२५ परिवार की 'मोरा' विभाषा में 'कूरी" तथा 'मल्लो' विभाषा में 'कोड़ो' प्रोड' शब्दों का प्रयोग बीस के अर्थ में होता है। संभवतः हिंदी में इन्हीं विभाषाओं में से किसी एक के संसर्ग से 'कोड़ी' शब्द बन गया होगा। इस प्रकार का प्रभाव केवल हिंदी हो पर नहीं पड़ा है, वरन् आर्यभाषाओं के अंतर्गत बँगला, सिरिपुरिया. छाकमा तथा प्रासामी भाषाओं पर भी इन्हीं बाहर भाषाओं में से किन्हों का प्रभाव पड़ा है जिसके फल-स्वरूप उनमें बीस के लिये अब भी क्रमशः 'कोड़िए', 'कुड़ि', 'कुरी' तथा 'कुरि' शब्दों का प्रयोग होता है । डाक्टर सुनीतिकुमार चटर्जी का मत है कि 'कोड़ी' की उत्पत्ति कोल-भाषाओं के 'कोड़ी' शब्द से हुई है जो अब भी तामिल भाषा में बोस के पर्थ में बोला जाता है३ ।।
(७) प्रत्येकबोधक प्रत्येकबोधक शब्दों की रचना के अनेक ढंग हैं। 'प्रति', 'हर और 'फी' आदि शब्दों की सहायता से बननेवाले शब्द बहुत अधिक प्रयुक्त होते हैं। कभी कभी पूर्णांक तथा अपूर्णांकबोधक संख्यावाचक शब्दों की द्विरुक्ति से भी प्रत्येकबोधक शब्द बना लिए जाते हैं; जैसे-'एक एक लड़के को आधा आधा फल मिला'। 'प्रति' संस्कृत का तत्सम है तथा 'हर' और 'फी' फारसी भाषा के शब्द हैं। ___ अभी तक संख्यावाचक शब्दों के जिन सात भेदों का वर्णन
किया गया है वे सब किसी न किसी निश्चित संख्याओं की अनिश्चितता
"संख्या का बोध कराते हैं। पर कभी कभी अनिश्चित रूप से संख्यानों का बोध कराया जाता है। इसके
(१) देखिए-Grierson's Linguistic Survey of India, vol. I, part II, पृ० २३ ।
(२) देखिए-वही, पृ. २३ ।
(३) देखिए-S. K. Chatterji-0. and D. of the Bengali Language § 523.
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