________________
हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय
३६ गया है। यहाँ पर केवल एक मंत्र देना उचित होगा जिससे इस बात की पुष्टि होगी__ॐ अर्धनाम प्रखंड छाया, प्राण पुरुष भावे न जाया। मरे न पिंड थके न काय, सद्गुरु प्रताप हृदय समाय । शब्दस्वरूपी श्रीगुरु राघवानंदजी ने श्रीरामानंदजी कू सुनाया। भरे भंडार काया बाढ़े त्रिकुटो अस्थान जहाँ बसे श्री सालिग्राम ॥ ॐकार हाहाकार सुनती सुनती संसे मिटे ॥ इति अमरबीज मंत्र ॥ १७ ॥
इसमें योग की त्रिकुटी में वैष्णव शालिग्राम विराजमान हैं। यह ग्रंथ चाहे स्वयं रामानंदजी का न हो परंतु इससे इतना अवश्य प्रकट हो जाता है कि उन्होंने अपने शिष्यों को वैष्णव धर्म के सिद्धांतों के साथ साथ योग की भी शिक्षा दी थी। इसी लिये शायद उनके कुछ शिष्य अवधूत कहे जाते थे। रामानंदी संप्रदाय में रामानंदजी महायोगी यथार्थ ही माने जाते हैं। ___उनके ग्रंथों में से रामाचन-पद्धति और वैष्णवमताब्जभास्कर देखने में पाए हैं। ये ग्रंथ उपासना-परक हैं। प्रो० विल्सन ने वेदों पर उनके एक संस्कृत भाष्य की बात लिखी है। प्रानंद भाष्य' नाम से वेदांतसूत्र का एक भाष्य संप्रदायवालों की ओर से प्रकाशित हुआ है परंतु अभी उसकी निष्पक्ष जाँच नहीं हो पाई है। उन्होंने हिंदी में भी कुछ रचना की है। उनकी एक कविता प्रादि ग्रंथ में संगृहीत है जो आगे चलकर मूर्तिपूजा के संबंध में उदाहृत की गई है। उसमें वे निराकारोपासना का उपदेश करते दीखते हैं। मंदिर में की पत्थर की मूर्ति और तीर्थ का जल उन्होंने अनावश्यक से माने हैं। परंतु बैरागी पंथ में उन्होंने शालिग्राम की पूजा का विधान किया। उनकी एक
और कविता आचार्य श्यामसुंदरदास ने अपने रामावत संप्रदाय वाले निबंध में छपवाई है, जिसमें हनुमान की स्तुति की गई है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com