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नागरीप्रचारिणी पत्रिका परंपरा से चले आते हुए सांप्रदायिक मत का खंडन करने के लिये जैसे हढ़ प्रमाणे की आवश्यकता होती है, वैसे प्रमाण दोनों में किसी ने नहीं दिए अतएव उनका जन्मस्थान प्रयाग ही में मानना उचित है।
कहते हैं कि पहले पहल इन्होंने किसी वेदांती के पास काशी में शांकर अद्वैत की शिक्षा पाई। परंतु इनके अल्पायु योग थे। स्वामी राघवानंद भी, जो रामानुज की शिष्यपरंपरा में थे ( रामानुजदेवाचार्य-राघवानंद) और बड़े योगी थे, काशी में रहते थे। उन्होंने रामानंद को योग-साधन सिखाकर उन्हें आसन्न मृत्यु से बचाया। जिस समय मृत्यु का योग था उस समय रामानंद को उन्होंने समाधिस्थ कर दिया और वे मृत्यु-मुख से बच गए। अतएव अद्वैती गुरु ने कृतज्ञता-वश अपने चेले को उन्हीं को सौंप दिया ।
रामानंदजी बड़े प्रसिद्ध हुए। प्राबू और जूनागढ़ की पहाड़ियों पर उनके चरण-चिह्न मिलते हैं और पिछले स्थान पर उनकी एक गुफा। उन्होंने स्वयं अपना अलग पंथ चलाया जिसके एक संभव कारण का उल्लेख पिछले अध्याय में हो चुका है। किंतु उनकी अद्वैती शिक्षा का भी इसमें कुछ भाग जरूर रहा होगा। उनके वास्तविक सिद्धांत क्या थे, इसका पता लगाना बहुत कुछ कठिन काम हो गया है। मालूम होता है कि उन्होंने भक्ति, योग और अद्वैत वेदांत की अनुपम संसृष्टि की। ___ डाकोर से सिद्धांत पटल नामक एक छोटी सी पुस्तिका निकली है, जो स्वामी रामानंदजी की कही जाती है। इसमें सत्यनिरंजन तारक, विभूति पलटन, लँगोटी प्राडबंद, तुलसी, रामबीज आदि कई विषयों के मंत्र हैं। केवल यज्ञोपवीत का मंत्र संस्कृत में है, अन्य सब सधुकड़ी हिंदी में। इस ग्रंथ में नाथपंथ और वैष्णव मत की पूर्ण संसृष्टि दिखाई देती है। विभूति, धूनी, झोली प्रादि के साथ साथ इसमें शालिग्राम तुलसी आदि का भी प्रादर किया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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