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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय त्रिलोचन नामदेव का समकालीन था। उसकी भी कुछ कविता आदि ग्रंथ में संगृहीत है। ग्रंथ में कबीर के दो
दोहे हैं। जिनमें नामदेव और त्रिलोचन का ४. त्रिलोचन
- संवाद दिया हुआ है। इस संवाद से मालूम होता है कि कबीर त्रिलोचन से अधिक पहुँच के साधक थे। त्रिलोचन ने कहा, मित्र नामदेव, तुम्हारा माया-मोह अभी नहीं छूटा १ अभी तक फर्द छापा ही करते हो ? नामदेव ने जवाब दिया कि हाथ से तो सब काम करना चाहिए; परंतु हृदय में राम और मुख में उसका नाम रहना चाहिए। ओड़छेवाले हरिरामजी 'व्यास' ने कहा है कि नामदेव और त्रिलोचन रामानंद से पहले दिवंगत हो गए थे। मेकॉलिफ ने अयोध्या के जानकीवरशरण के साक्ष्य पर त्रिलोचन का जन्म सं० १३२४ (१२६७ ई०) माना है जो, जैसा हम रामानंदजी के जीवन-वृत्त के संबंध में देखेंगे, 'व्यास' जी के कथन के विरुद्ध नहीं जाता।
अगस्त्य-संहिता के अनुसार स्वामी रामानंद का जन्म संवत् १३५६ में, प्रयाग में, हुआ। इनकी माता का नाम सुशीला और
पिता का पुण्यसदन था। भक्तमाल पर
- प्रियादास की टोका भी इससे सहमत है। भांडारकर और प्रियर्सन दोनों ने भी इसे माना है। परंतु मेकॉलिफ ने इनका जन्म मैसुर के मैलकोट स्थान में माना है। फर्कुहर ने भी उनको दक्षिण से लाने का प्रयत्न किया है। परंतु
५. रामानंद
(1) नामा माश मोहिया, कहै तिलोचन मीतु ।
काहे छापे छाइलै, राम न लावहि चीतु ॥ कहै कबीर तिलोचना, मुख ते राम संभालि । हाथ पाउँ कर काम सभु, चीत निरंजन नालि ।
-'ग्रंथ', पृ० ७४०, २१२-२१३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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