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खड़ी बोली के संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति ४२१ शब्दों के विचित्र ही रूप बनते हैं; जैसे-'एक', 'दूना', 'ती, तीन', 'चौक, चौका', 'दहाम', 'सवा' (१४), 'ढाम, ढामा' (२३) इत्यादि । ___ गुणावाचक संख्यावाचक शब्दों का उपयोग संख्याओं के पहाड़ो को पढ़ते समय होता है।
(६) समुदायवाचक खड़ी बोली के समुदायवाचक संख्यावाचक शब्द प्राय:- 'आ' या 'ई' लगाकर बनाए जाते हैं; जैसे-'बोस' से 'बीसा' (=बोस का समुदाय); 'पचीस' से 'पचीसा', 'पचीसी' (=पचीस का समुदाय); 'बत्तोस' से 'बत्तीसी' (= बत्तीस का समुदाय); 'हज़ार' से 'हज़ारा', 'हज़ारी' (= हज़ार का समुदाय ) इत्यादि। यह 'मा' प्रत्यय का अवशेष-चिह्न है। मागे इसका स्पष्टीकरण होगा। खड़ी बोली के कुछ शब्दों ( एका, दुका, तिका, चौका आदि ) में संस्कृत के 'कम्' से प्राया हुआ 'क' भी अब तक विद्यमान है। इन शब्दों की उत्पत्ति का क्रम निम्नलिखित है
सं० एककम् > प्रा० एकअं > ख० एक्का
बो० एक्का।
सं० द्विकम् > प्रा० द्विक > ख० दुक्का
बो० दुका।
सं० त्रिकम् , त्रिककम् > प्रा० विनं, तिका
तिक > ख० बो० तिका ।
___ सं० चतुष्कम् , चतुष्ककम् > प्रा० चउकं, चौका
चउकअं > ख० बो० चौका। सं० पञ्चकम् > प्रा० पंचनं > ख० बो० पंचा, पंजा। यहाँ
हम देखते हैं कि 'पंचा' और 'पंजा' में उपरि. पंचा
लिखित शब्दों के समान 'क' नहीं है। इसका कारण यही है कि प्राकृत में ही इस वर्ण का लोप हो गया था।
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