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नागरी प्रचारिणी पत्रिका
'ढंग' ।
प्राकृत में 'विध' का 'विह' रूप हो जाता है । हार्नले महोदय का कहना है कि प्राकृत के इस 'विह' के 'वि' का लोप हो जाने तथा उसमें 'रा' प्रत्यय का योग हो जाने से 'हरा' शब्द बन गया है । अपने कथन की पुष्टि के लिये उन्होंने 'दोहरा' की उत्पत्ति के क्रम का निम्नांकित ढंग से उदाहरण दिया है
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सं० द्विविध > प्रा० दुविह, वेविह
अप० दोहडड, बेहड
> ख० बी० दोहरा ।
'लड़ा' शब्द संस्कृत के 'लता'' से निकला हुआ जान पड़ता है, पर हिंदी में इसका अर्थ दूसरा ही हो गया है । 'लड़ा' और 'हरा' के योग से बने हुए शब्द प्रायः मालाओं आदि के विशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं
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(५) गुणावाचक
खड़ी बोली के गुणावाचक संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति के संबंध में कोई विशेष बात कहने की नहीं है । ये शब्द प्राय: समुदायबाधक संख्यावाचकों की सहायता से बनाए जाते हैं; जैसे'तीन अठे चौबीस' में 'अठे' = 'आठ के समुदाय', अर्थात् तीन पाठ के समुदाय चौबीस के बराबर होते हैं। अधिकांश गुणावाचक शब्द समुदायवाचकों में बहुवचन का चिह्न है, और इन शब्दों में ठीक उसी प्रकार लगाया जाता है जिस प्रकार प्रकारांत पुल्लिंग संज्ञाओं के कर्ताकारक के बहुवचन में । उदाहरण के लिये 'घोड़ा' शब्द को लीजिए । कर्ताकारक बहुवचन में इसका 'घोड़े' रूप होगा। ठीक उसी प्रकार 'अट्ठा' का 'अट्टे' 'पंजा' का 'पंजे' इत्यादि रूप हो जाते हैं । पर यह नियम सर्वव्यापी नहीं है । इसके अपवाद-रूप कुछ गुणावाचक
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( १ ) संस्कृत के 'सर' शब्द से 'हरा' की उत्पत्ति क्यों न मानी जाय ? - सं० ।
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