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चौगुना
खड़ी बोली के संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति ४१६ विकार हो जाता है। विकृत हो जानेवाले शब्द 'दो', 'तीन', 'चार'. 'पांच', 'सात' और 'पाठ' हैं। इन शब्दों के प्रावृत्तिवाचक रूप बनाने में इनमें जो विकार उपस्थित हो जाता है वह नीचे दिए हुए शब्दों को देखने से स्पष्ट हो जायगा । पूर्णांक संख्याबोधक
आवृत्तिवाचक
दुगुना, दुगना, दूना तोन
तिगुना चार पांच
पंचगुना सात
सतगना प्राठ
प्रठगुना 'गुना' शब्द संस्कृत के 'गुणक' से निकला है । खड़ी बोली के आवृत्तिवाचक संख्यावाचक शब्द, प्राय: संस्कृत के बने-बनाए शब्दों के प्राकृत से होकर आए हुए रूप हैं। उदाहरणार्थ 'दुगुना' को लीजिए। सं० 'द्विगुणकम्' > प्रा० 'दुगुणग्रं' > 'दुगुनं' > ख० बो० 'दुगुना', 'दुगना'। फिर 'दुगना' के 'ग' का लोप हो जाने से एक दूसरा रूप 'दूना' भी बन गया। इसी प्रकार सं० 'त्रिगुणकम्' > प्रा० 'तिगुणग्रं' > ख० बो० 'तिगुना'; सं० 'चतुर्गुणकम्' > प्रा० 'चउगुण' > ख० बो० 'चौगुना'।
आवृत्तिवाचक शब्दों के अंतर्गत एक और प्रकार के भी शब्द पाए जाते हैं जो अँगरेजी में 'Reduplicatives' कहे जा सकते हैं। इस प्रकार के शब्द प्रायः 'लड़ा' और कभी कभी 'हरा' शब्दों के योग से बनाए जाते हैं; जैसे-'दुलड़ा', 'तिलड़ा', 'इकहरा', 'दुहरा' इत्यादि । 'हरा' के योग से बननेवाले शब्द 'इकहरा', दोहरा', 'तेहरा'
और 'चौहरा' हैं। मिस्टर हार्नले ने इस 'हरा' प्रत्यय की उत्पत्ति संस्कृत के 'विध' शब्द से मानी है। 'विध' का अर्थ है 'रूप' या
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