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खड़ी बोली के संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति ४१३ 'सात' का। मिस्टर हार्नले तथा मिस्टर केलागरे दोनों पश्चिमी विद्वानों का अनुमान है कि ये शब्द 'ढ्योंचा' के अनुकरण पर बना लिए गए हैं। इन विद्वानों का अनुमान ठोक जान पड़ता है, क्योंकि संस्कृत के किसी शब्द से इनकी उत्पत्ति नहीं बताई जा सकती।
(३) क्रमवाचक खड़ी बोली में क्रमवाचक शब्द पूर्णांकबोधक संख्यावाचकों में 'वा' प्रत्यय लगाकर बनाए जाते हैं; जैसे-'पाठवाँ' (आठ + वाँ)। यह 'वा' प्रत्यय संस्कृत के 'म' प्रत्यय का विकृत रूप है जो इसी प्रसंग में प्रयुक्त होता है; जैसे-सं० 'दशम' (दश+म), ख० बो० पाठवाँ। 'म' के स्थान पर '_' हो जाना अपभ्रंश-काल की एक विशेष प्रवृत्ति थी जिसके कारण हिंदी में भी '' आ गया है । पर कुछ क्रमवाचक शब्द इस ढंग से बने हुए नहीं हैं। ये शब्द 'पहला, पहिला', 'दूसरा', 'तीसरा', 'चौथा' और 'छठा, छट्ठा' हैं, जो सीधे संस्कृत के क्रमवाचक शब्दों से बन गए हैं। ___ वैदिक संस्कृत में 'पहला' का समानार्थी 'प्रथ + इल'३ शब्द पाया जाता है, जिसके मध्यकाल में 'पठिल्ल' 'पथिल्ल', 'पहिल्ल) होता था। लिखने में 'ख' के स्थान पर प्रायः 'ष' लिखा जाने लगा था। अतः 'खोंचा' में जो 'ख' विद्यमान है वह संस्कृत के 'षट्' के 'ष' का ही रूपांतर है।
(.) देखिए हानले का Grammar of the Gaudian Languages, $ 416.
(२) देखिए केलाग का Grammar of the - Hindi Lang. uage. $ 251.
(३) वैदिक संस्कृत में 'प्रध' अथवा 'प्रथिल' कोई प्रयुक्त शब्द नहीं है। विद्वानों की कल्पना है कि उस काल में 'प्र' उपसर्ग के तुलनावाचक 'प्रतर'
और 'प्रतम' रूप बनते रहे होंगे; प्रतर से प्रथिर > प्रथिल > पथिल्ल > पढिल्ल > पहिल्ल श्रादि बनने के बाद 'पहिल' रूप विकसित हुआ और प्रतम से संस्कृत के प्रथम और प्राकृत के पढमो आदि रूप बने हैं।-सं० ।
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