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नागरीप्रचारिणी पत्रिका अद्ध + अउट्ठ > अद्ध + ओट्ठ > अद्धो?। शौरसेनी प्रा० में 'अद्धो?' तथा मागधी प्रा० में 'अद्भुटु' रूप होता है। जैन अर्ध
मागधी प्राकृत में 'अड्दुट्ठः पाया जाता है, हुंठा
जिसे संस्कृत का बाना पहनाकर बाद में संस्कृत के अध्युष्ठ' शब्द की रचना की गई है। प्राकृत के 'पद्धोट' से 'महो?' बना और फिर आदि के 'अ' का लोप हो जाने से 'हो?' रह गया। 'हो?' से बिगड़कर खड़ी बोली के 'हूँठा' और 'हुंठा' बने हैं। इन रूपों में से 'ह' के लुप्त हो जाने से खड़ी बोली का 'उठा' तथा पंजाबी के 'ऊठा' और 'ऊँटा' बन गए हैं। सं० अर्धपञ्चमः > प्रा० अड्ढवंचओ > अप० अड्ढौंचउ >
ख० बो० ढौंचा, ढयोंचा। पंजाबी में ढ्योंचा
'ढौंचा' रूप होता है। 'प्योचा', 'खेचा' और 'सांचा', 'हूँठा' और 'ढ्योचा' की भाँति, संस्कृत के शब्दों से निकलते हैं। 'हुंठा' तथा 'व्योंचा' के
. मूल संस्कृत शब्द, जिन संख्याओं का वे
" बोध कराते हैं उनके बाद के शब्दों के पूर्व 'अर्ध का योग करके बनाए गए हैं; जैसे-अर्ध+पञ्चम (अर्धपंचम)
=साढ़े चार। पर 'प्योचा' इत्यादि में उस प्रकार का क्रम नहीं दिखाई देता, प्रत्युत उसके विपरीत क्रम है। इन शब्दों में इनसे पहले
___ वाले शब्दों का आभास वर्तमान है; जैसे-- खांचा, सतोचा
'प्योचा' (=साढ़े पाँच) में 'पाँच' का, 'खांचा' ( =साढ़े छः ) में 'छः" का तथा 'सतेोचा' ( = साढ़े सात ) में
___प्यांचा
(१) 'छः' की व्युत्पत्ति के प्रसंग में हम देख चुके हैं कि संस्कृत के 'षष' के 'ष' का हिंदी में 'छ' नहीं हुआ है, वरन् यह ईरानी भाषा के प्रभाव से पाया है। मध्यकाल में 'ष' को 'स' करने की प्रवृत्ति थी, पर बाद में 'ख' भी होने लगा था। पुरानी हिंदी में 'ष' का उच्चारण 'ख' के समान
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