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खड़ी बोली के संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति ४०६ होने पर 'पौन' शब्द का 'पौने' रूप हो जाता है। और भी अधिक सूक्ष्म संख्याओं का बोध क्रमबोधक संख्यावाचक शब्दों के साथ 'भाग', 'अंश' या 'हिस्सा' शब्द के प्रयोग द्वारा कराया जाता है; जैसे 'पाठवाँ भाग', 'शशि' (=स. शन + अंश), 'सहस्रांश', 'हजारवाँ हिस्सा' इत्यादि । गणितशास्त्र में इस प्रकार की संख्याओं को सूचित करने के लिये 'बटा' शब्द का प्रयोग होता है; जैसे 'एक बटा छः' (१)। 'एक बटा छः' का अर्थ है 'छः भागों में बटा हुआ एक' अर्थात् एक का छठा भाग। इसी प्रकार ‘सात बटा बीस' ( 9 ) अर्थात् बीस भागों में बटा हुआ सात सात का बीसवाँ हिस्सा। ऐसे शब्दों को प्रायः लोग इस प्रकार भी समझते हैं कि 'सात बटा बीस' का तात्पर्य यह है कि एक वस्तु के बीस भाग किए गए और उनमें से सात भाग ले लिए गए। चाहे जिस प्रकार समझा जाय, जिस संख्या का बोध होता है वह दोनों दशाओं में एक ही होती है। सात सौ का बीसवाँ भाग पैंतीस, और सौ के बीस भाग करके उनमें से सात भाग लेने पर भी वही पैंतीस ही होता है। पर 'बटा' शब्द के अर्थ के अनुसार पहले कहे हुए ढंग से ही अर्थ लगाना अधिक स्वाभाविक जान पड़ता है।
जिन विशेष अपूर्णांकबोधक संख्यावाचकों के नाम ऊपर दिए गए हैं वे सभी संस्कृत के शब्दों से निकले हैं। 'चौथाई'
. और 'तिहाई' क्रमश: संस्कृत के क्रमवाचक तिहाई; चौथाई
- 'चतुर्थ' तथा 'तृतीय' में 'ई' अथवा 'आई' प्रत्यय लगाकर बनाए गए हैं। 'तिहाई' में 'ह' का योग केवल उच्चारण में सहायक के रूप में हो गया है। सं० तृतीय > प्रा० तइअ >तीप्राई > तिपाई >तिहाई। संस्कृत में इसके लिये 'त्रिभागिका' शब्द का भी प्रयोग होता है।
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