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नागरीप्रचारिणी पत्रिका उसी अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। जिस अर्थ में वे संस्कृत में प्रयुक्त होते हैं। अत: यहाँ पर इतना समझ लेना ही पर्याप्त होगा कि खड़ी बोली के उपर्युक्त संख्यावाचक शब्द संस्कृत के जिन शब्दों से निकले हैं उनसे भिन्न अर्थ रखते हैं।
पहले दी हुई, संस्कृत के संख्यावाचक शब्दों की, तालिका से यह भी विदित होता है कि संस्कृत के 'अयुत' ( =१० हजार ), 'प्रयुत' (=१० लाख), अर्बुद' (=१० करोड़), खर्व' (=१० अरब), 'शंकु' (=१० खरब), 'अंत्य' (= १० नील) तथा परार्ध ( = १० पद्म) के लिये खड़ी बोली में विशेष शब्द नहीं हैं। इन शब्दों का बोध 'दस हजार', 'दस लाख', 'दस करोड़' आदि कहकर कराया जाता है। संस्कृत के 'अयुत', 'प्रयुत', 'अब्ज', 'जलधि', अंत्य', 'मध्य' तथा 'परार्ध' से निकले हुए खड़ी बोली में कोई शब्द नहीं हैं।
(२) अपूर्णांक-बोधक खड़ी बोली में निम्नलिखित अपूर्णांक-बोधक संख्यावाचक शब्द पाए जाते हैं
पाव, चौथाई तिहाई
डेढ़ प्राधा
अढ़ाई, ढाई
साढ़े० 'ढाई के आगे 'हूँठा' (= साढ़े तीन ), 'ढ्योचा' (=साढ़े चार ), 'पोचा', 'प्यांचा' (= साढ़े पाँच ), 'खोचा' (= साढ़े छः) वथा 'सोचा' (=साढ़े सात ) भी होते हैं, पर इनका प्रयोग केवल संख्याओं के पहाड़ों में ही होता है। इनके अतिरिक्त अन्य सब अपूर्णांकबोधक संख्यावाचक शब्द 'पौन', 'सवा' तथा 'साढ़े की सहायता से बना लिए जाते हैं; जैसे 'पौने तीन', 'सवा तीन', 'साढ़े तीन' इत्यादि। किसी संख्यावाचक शब्द के पहले प्रयुक्त
सवा
पौन
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