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________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका सं० शत > प्रा० सत, सय, साग्र > अप० सउ > ख० बो० 1 ऊपर कहा गया है कि 'सौ' के लिये 'सै' का भी प्रयोग होता है जो प्राकृत के 'सय' रूप से निकला है I मिस्टर केलाग ने अपने Grammar of the Hindi Language में इस शब्द को प्राकृत के 'सयन' से निकला हुआ माना है। 1 उनका कथन है कि संस्कृत के 'शतम्' से प्राकृत में 'सयन' बना होगा, और फिर 'सयन' से 'सै' बन गया है । पर 'सयन' की अपेक्षा 'सय' से 'सै' का उद्भव होना अधिक संभव जान पड़ता है । सौ से ऊपर जिस प्रकार खड़ी बोली में संख्यावाचक शब्दों की रचना की जाती है उसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। जिन संख्याओं के विशेष नाम हैं वे भी ऊपर बताए जा चुके हैं। आगे उनकी उत्पत्ति के संबंध में विचार किया जायगा । ४०४ खड़ी बोली में दस सौ के लिये प्रायः 'हज़ार' शब्द का प्रयोग होता है | यह फारसी भाषा का शब्द है जो अन्य बहुत से फारसी के शब्दों के समान हिंदी भाषा में आ गया है । 'हज़ार' के लिये संस्कृत के तत्सम शब्द 'सहस्र' का भी प्रयोग खड़ी बोली में होता है । खड़ी बोली ने प्राकृत के 'सहस्स' (< सं० सहस्र ) के आधार पर बना हुआ कोई शब्द ग्रहण नहीं किया है, पर पूर्वी हिंदी में 'सहस्स' से निकले हुए 'सहस' शब्द का प्रयोग होता है । ऐसा जान पड़ता है कि मुसलमानों के भारतवर्ष में आने के समय यहाँ की आर्यभाषाओं की बोलचाल में 'दशशत' के समान किसी यौगिक शब्द का प्रयोग अधिकता से होने लगा था, और उस समय साहित्य में व्यवहृत 'सहस' तथा 'सहस्स' को लोग भूल से गए थे। उसी समय उन्हें फारसी का प्रयौगिक 'हज़ार' शब्द मिला, जिसे पहले उत्तरपश्चिम की बोलियों ने ग्रहण किया होगा और तत्पश्चात् धीरे धीरे अन्य बोलियों में भी उसका प्रयोग होने लगा होगा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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