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खड़ी बोली के संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति ४०१ सं. अशोति > प्रा० आसीई, असीइ > अप० असी >ख० बो० अस्सी । ___ सं० एकाशोति >प्रा० एक्कासीई, एकासीइ > अप० इकयासी > ख० बो० इक्यासी।
सं० द्वयशोति > प्रा० बासीइ> अप० बायासी>ख० बो० बयासी।
सं० व्यशोति >प्रा० त्रेयासी > अप० त्रेयासी > ख० बो. तिरासी। 'तिरपन' के संबंध में लिखते समय ऊपर बताया जा चुका है कि 'तिरासी' का 'र' संस्कृत से ही प्राया है अतः यहाँ पर उस व्युत्पत्ति को दुहराने की आवश्यकता नहीं।
सं० चतुरशोति >प्रा० चटरासी, चौरासी, चउरासीइ > अप० चौरासी > ख० बो० चौरासी ।
सं० पञ्चाशीति : प्रा० पंचासीइ > अप० पंचासी> ख० बो० पचासी।
सं० षडशीति > प्रा० छासोइ > अप० छयासी > ख० बो० छियासी। संस्कृत के 'ड' के स्थान में 'अ' तथा बाद में 'अ' के स्थान में 'य' हो जाने से 'छियासी' रूप बन गया है।
सं० सप्ताशोति >प्रा० सत्तासीइ > प्रप० सत्तासी>ख० बो० सत्तासी।
सं० अष्टाशीति > प्रा० अट्ठासीइ > अप० अट्ठासी>ख० बो० अट्ठासी।
सं० नवाशीति, एकोननवति इत्यादि > प्रा० नवासीइ >अप० नवासी >ख० बो० नवासी।
संस्कृत में एकोननवति का प्रयोग बहुत कम होता है, पर अर्धमागधी प्राकृत में उससे निकला हुआ 'एगृणणउइ' ही प्रयुक्त होता है। यहाँ पर एक बात ध्यान देने योग्य है। संस्कृत शब्दों में विंशति
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