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________________ खड़ो बोली के संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति ३६६ सं० एकोनसप्तति, उनसप्तति इत्यादि . अर्धमा० प्रा० अरणत्तरि, एगुणसत्तरि, प्रा. एगूणसत्तरि > अप० उगुणसत्तरि > ख० बो० उनहत्तर। ऊपर कहा जा चुका है कि द्वितीय और अष्टम दशकों में अन्य शब्दों के योग से खड़ी बोली के 'सत्तर' का 'स', 'ह' के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इसी नियम के अनुसार इकहत्तर, बहत्तर, तिहत्तर आदि बने हैं। राजस्थानी में प्राकृत के 'बावत्तरि', 'तेवत्तरि', 'चोवत्तरि' आदि से मिलते-जुलते ‘इकत्तर', 'बवत्तर' या 'छियंतर', 'सतंतर' तथा 'इठंतर' मिलते हैं जिनमें 'ह' वर्तमान नहीं है। पर इससे यह न समझना चाहिए कि खड़ी बोली में प्रा जानेवाला यह 'ह' आधुनिककालीन प्रवृत्ति का फल है। अर्धमागधी प्राकृत के कुछ रूपों (पंचहत्तरि, सत्तहत्तर तथा अट्ठहत्तर ) में भी संस्कृत-शब्दों (पक्षसप्तति, सप्तसप्तति तथा प्रष्टसप्तति) के 'स' का 'ह' के रूप में परिवर्तन पाया जाता है। ___ पंजाबी, सिंधी तथा मराठी में भी 'ह' ही पाया जाता है; जैसे'इकहत्तर' ( पंजाबी ); 'इकहतरि' (सिंधी ); 'इकहत्तर' (मराठी) । यहाँ हम यह भी देखते हैं कि संस्कृत के 'सप्तति' के अंतिम 'त' के स्थान में खड़ी बोलो में 'र' हो गया है। 'त' के स्थान में 'ए प्राचीन काल में ही होने लगा था। पाली भाषा में 'सत्तति' और 'सत्तरि' दोनों रूप पाए जाते हैं। भाषा-विज्ञान-वेत्ताओं का अनुमान है कि 'त' के स्थान में पहले 'ट' हुआ होगा, फिर 'ट' का 'ड' हुमा होगा और तत्पश्चात् 'ड' के स्थान में 'र' हुमा होगा। इस प्रकार 'सप्तति' > 'सत्तति' > 'सत्तटि' > 'सत्तडि' > 'सत्तरि', 'सत्तर। संख्यावाचक शब्दों के द्वितीय दशक में भी 'ड' > 'द' का 'र' के रूप में परिवर्तित हो जाना हम पहले देख चुके हैं (एकादश > एमाडस > ग्यारह; पञ्चदश > पण्णडस > पंद्रह इत्यादि)। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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