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नागरीप्रचारिणी पत्रिका इस मत के माननेवालों ने 'एकतालीस' की उत्पत्ति नीचे लिखे हुए ढंग से मानी है
सं० एकचत्वारिंशत् > प्रा० एकचत्तालीसा > एकचालीस > एकचालीस > अप० एकतालीस > ख० बो० एकतालीस ।।
पर इस प्रकार 'च' का 'त' के रूप में परिवर्तित हो जाना किसी प्रमाण अथवा किसी अन्य उदाहरण से सिद्ध नहीं होता। अत: हम पहले दी हुई व्युत्पत्ति को ही ठीक मानते हैं। तेंतालीस, पैंतालीस, सैंतालीस तथा अड़तालीस भी एकतालीस ही के समान बने हैं। बयालीस, चौवालीस तथा छियालीस में 'च' के साथ 'त' का भी लोप हो गया है। ये लोप और आगम हिंदी में नहीं हुए हैं वरन् जिन प्राकृत-शब्दों से हिंदी के शब्द आए हैं उन्हीं में हो चुके थे। आगे दी हुई इन उपर्युक्त शब्दों की व्युत्पत्ति को देखने से यह कथन स्पष्ट रूप से समझ में आ जायगा।
सं० द्विचत्वारिंशत्, द्वाचत्वारिंशत् > प्रा० बायालोस > अप० बिंतालीस, बैतालीस; ख० बो० बयालीस, बयालिस । ___ सं० त्रिचत्वारिंशत्, त्रय:चत्वारिंशत् > अर्धमा० प्रा० तेयालोस, प्रा० तेचत्तालोस; अप० त्रयालोस > ख० बो० तेंतालीस । राजस्थानी और मेवाड़ी में क्रमश: 'तयाँलीस' और 'तियालीस' पाए जाते हैं।
सं० चतुश्चत्वारिंशत् > प्रा० चउच्चत्तालीसा, अर्धमा० प्रा० चउयालीस, चोयालीस > अप० चोयालीस > ख० बो० चौवालोस।
सं० पञ्चचत्वारिंशत् > अर्धमा० प्रा० पणयालीस, प्रा० पञ्चचत्तालीसा > अप० पणतालिस, पांतालीस > ख० बो० पैंतालोस । __ सं० षट्चत्वारिंशत् > प्रा० छच्चत्तालीसा, अर्धमा० प्रा० छायालोस> अप० छैहैतालीस; ख० बो० छियालीस ।
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