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________________ खड़ी बोली के संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति ३६३ सं० चत्वारिंशत् > अर्धमा० प्रा० चत्तालीस, प्रा. चत्तालीसा > अप० चालीस > ख० बो० चालीस । खड़ी बोली के 'चालीस' में प्राकृत के 'त' का लोप हो गया है, पर जहाँ 'चालीस' के साथ दूसरे शब्दों की संधि हुई है वहाँ प्रायः सर्वत्र यह 'त्त' वर्तमान है और 'च' का लोप हो गया है। 'उनतालिस' में हम 'च' का लोप और 'त' की स्थिति देख चुके हैं और 'एकतालीस', 'तेंतालीस', 'पैंतालीस', 'सैंतालीस' तथा 'अड़तालीस' में फिर आगे देखेंगे। यहाँ एक बात ध्यान देने की और भी है कि इन शब्दों में विद्यमान 'ल' संस्कृत के शब्दों में नहीं पाया जाता। खड़ी बोली में यह अपभ्रंश तथा प्राकृत से आया है; और प्राकृत में यह संस्कृत के 'र' के स्थान में प्रा गया है। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि यह 'ल' इन शब्दों में लुप्त हो जानेवाले 'च' के स्थान पर आ गया है। पर यह अनुमान ठीक नहीं जान पड़ता। जब हिंदी की मूल भाषाओं अर्थात् अपभ्रंश और प्राकृत के शब्दों में 'ल' वर्तमान है तब खींचतान करके हिंदी के शब्दों को सीधे संस्कृत के शब्दों से मिलाने की आवश्यकता नहीं है। सं० एकचत्वारिंशत् :- प्रा० एकचत्तालोसा। प्राकृत के इस शब्द से 'च' का लोप करके 'एकअत्तालीस' की कल्पना भाषा विज्ञान-वेत्तानों ने की है, और फिर उससे एकतालीस-साठ खड़ी बोली का 'एकतालीस' रूप निकाला है। सिंधी भाषा में 'एकतालीह' शब्द अब भी वर्तमान है जो 'एकय. तालीह' का संकुचित रूप जान पड़ता है। अतः 'एकमत्तालीस' की कल्पना कोरी कल्पना ही नहीं है। अपभ्रंश में भी 'एकतालीस' ही मिलता है। कुछ विद्वानों का कथन है कि पहले 'त' का लोप हो गया है, जैसा कि 'चालीस' में पाया जाता है। बाद में 'च' के स्थान पर 'त' होकर 'एकतालीस' बना है। www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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