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________________ ३६० नागरीप्रचारिणी पत्रिका ___ उन्नीस के लिये संस्कृत में 'ऊनविंशति', 'एकानविंशति,' 'एकोनविंशति' तथा 'नवदशन्' शब्दों का प्रयोग होता है। प्राकृत में 'ऊनविंशति' का 'ऊनवीसइ' और 'एकोनविंशति' का एकोनवीसइ' हो गया है। अर्धमागधी प्राकृत में 'अउणवीस' तथा 'एगूणवीस' (इ) रूप पाए जाते हैं। अपभ्रंश में 'णवरह', 'णवदह' तथा 'एगुणविंस' पाए जाते हैं। खड़ी बोली का उन्नीस प्राकृत के 'ऊनवीसइ' से प्राया है। राजस्थानी में अपभ्रश के 'एएणविंस' से निकला हुआ 'उगणीस' रूप पाया जाता है संभवतः जिसकी मूल-संस्कृत का 'अपगुण(-विंशति)' शब्द है । सं० विशति > प्रा० वीस, वीसइ > अप० बीस > ख० बो० बोस । सं० 'एकविंशति' > प्रा० 'एकवीसा' > अप० 'एकवीस' > ख० बो० 'इकोस' । यहाँ हम देखते हैं कि संस्कृत के 'व' का हिंदी में _ लोप हो गया है। इस नियम का अधिकार घोस से चालीस न चौबीस और छब्बीस को छोड़कर इक्कीस से अट्ठाइस तक के सब शब्दों पर पाया जाता है। ____ सं० 'द्वाविंशति' > प्रा० 'बावीसा', अर्धमागधी प्रा० 'बविस', 'बावीसा', 'बावीसं'; अप० 'बावीस', 'बवीस' > ख० बो० 'बाइस' । यहाँ हम देखते हैं कि संस्कृत के 'द्वा' का हिंदी में 'बा' या 'वा' रह गया है। बारह, बत्तीस, बयालीस, बावन, बासठ, बहत्तर, बयासी, तथा बानवे में भी इसी प्रकार का परिवर्तन देखा जाता है। ___ सं० त्रयोविंशति > प्रा० तेवीसा, अर्धमागधी प्रा० तेवीव, तेवीस, तेवीसा; अप० त्रेवीस, तेवीस > ख० बो० तेइस । (1) S. K. Chatterji, O. and D. of the Bengali Lan. guage, Vol. II. 8512. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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