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________________ ३८८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका अन्य दशकों में सर्वत्र नहीं पाया जाता। उदाहरणार्थ-संस्कृत के द्वादश', 'द्वासप्तति' और 'पञ्चाशत्' को लीजिए। खड़ी बोली में इन शब्दों के क्रमश: 'बारह', 'बहत्तर' और 'पचास' रूप पाए नाते हैं। यहाँ हम देखते हैं कि 'द्वादश' और 'द्वासप्तति' के 'श' और 'स' के स्थान में हिंदी में 'ह' हो गया है, पर 'पञ्चाशत्' के 'श' का 'स' ही रह गया है। सं० द्वादश > प्रा० बारह > अप० बारह > खड़ी बोली बारह, बारा। पाली में 'बारस' रूप मिलता है जिसमें संस्कृत के 'द्वा' के स्थान में 'बा' पाया जाता है। तत्कालीन ध्वनि-परिवर्तन के नियमों के अनुसार वैदिक संस्कृत के 'द्व' के स्थान में पाली में 'ब' हो जाना अस्वाभाविक प्रतीत होता है। संभवतः यह किसी बाहरी भाषा का प्रभाव होगा। 'बारस' का प्रयोग मागधी तथा अर्धमागधी प्राकृतों में भी होता था जो पाली से ही उनमें आ गया होगा। प्राचीनकालीन 'द्वादश' से निकले हुए 'द्वादश' और 'दुवालस' शब्द भी क्रमशः पाली और मागधो प्राकृत में प्रयुक्त होते थे। सं० त्रयोदश > प्रा० तेरह > अप० तेरह > ख० बो० तेरह । सं० चतुर्दश > प्रा० चउदह > अप० चउहह >ख० बो० चौदह । सं० पञ्चदश > प्रा० पण्णरहो, पण्णरह > अप० पण्णरह > ख० बो० पंद्रह । पूर्वी हिंदी में 'ण'-युक्त (जो अब 'न' के रूप में परिणत हो गया है ) रूप 'पनरह' वर्तमान है। खड़ी बोली से मिलते-जुलते गुजराती, सिंधी तथा पंजाबी के क्रमश: 'पंदर', 'पंदरहँ' ( या पंधं ) तथा 'पदस्' रूप पाए जाते हैं। (१) " Pali form for twelve is barasa', with-b-for Old Indo-Aryan-dv-which does not seem to be a proper Midland treatment of this group of consonants." S. K. Chatterji-0. and D. of the Bengali Language. ६. 511. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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