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खड़ी बोली के संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति ३८५ जानेवाली किसी फारसी बोली के प्रभाव से ( जिसमें 'स्वश' के समान कोई शब्द रहा होगा, क्योंकि प्राचीन फारसी में यही शब्द मिलता है ) भारतवर्ष में 'यश' शब्द का प्रचार हुआ होगा और फिर 'क्षश' के 'क्ष' का 'छ' हो गया होगा।
अशोक के शिलालेखों में छः के लिये 'छ' (रूपनाथ-"छ बचरे"), 'सा' (सहसराम-“स-वचले, स-पंन्ना" ), 'श' ( उत्तर-पश्चिम और कालसी ) तथा 'सडु' (देहली, सिवलिक और मेरठ-“सडुवीसति" ) रूप पाए जाते हैं। अपभ्रंश में भी प्राकृत से आया हुआ 'छ' ही रूप पाया जाता है। इसी रूप से खड़ी बोली का 'छः' बना है। पूर्वी हिंदी, सिंधी तथा गुजराती में 'छ' ही मिलता है। खड़ी बोली का 'छ:' उच्चारण में सिंधी के 'छह' तथा मराठी के 'सहा' के समान है। इस शब्द की उत्पत्ति प्राकृत के 'छस' या 'छह' से हुई जान पड़ती है।
सं० सप्त > प्रा० सत्त, अप० सत्त > ख० बो० सात । सं० अष्ट > प्रा० अट्ठ > अप० अट्ठ > ख० बो० आठ।
सं० नव > प्रा० नभ, ण, नव > अप० णव, नव > ख० बो० नौ।
(१) "Could the typically Iranian <- xsvas > have been borrowed or blended with the Indian şaş—in an old Indo-Aryan frontier dialect in the form-ksas-ksak x x x x And ksak could, very well, be the source of-cha, chaa-, with the North-western or Western Mid. Indo-Aryan alteration of <-ke-> to <-ch ->." ।
8. K. Chatterji-Origin . & Development of the Bengali Language.
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