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हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय
३५ नामदेव का जन्म सतारा जिले के नरसी बमनी गांव में एक शैव परिवार में हुआ था। महाराष्ट्री परंपरा के अनुसार उसका
पिता दामा शेट दरजी था। प्रादि ग्रंथ ३. नामदेव
' में नामदेव की जो कविताएँ सुरक्षित हैं उनमें वे अपने को छीपी कहते हैं। संभव है, उनके परिवार में दोनों पेशे चलते हैं।। मराठी में उनके एक अभंग से पता चलता है कि उनका जन्म संवत् १३२७ (सन् १२७० ) में हुआ था। लोग उनके मराठी अभंगों की नवीनता की दृष्टि से उनका आविर्मावकाल लगभग सौ वर्ष बाद मानते हैं। परंतु प्राधुनिक भाषाएँ इतनी नवीन नहीं हैं जितनी बहुधा समझी जाती हैं। ज्ञानदेव नामदेव के समकालीन थे। परंतु उनकी भाषा की प्राचीनता का यह कारण नहीं है कि उस समय तक प्राधुनिक मराठो का आविर्भाव नहीं हुआ था, बल्कि यह कि विद्वान् होने के कारण परंपरागत साहित्यिक भाषा पर उनका अधिकार था जिसे लिखने में, अपढ़ होने कारण, नामदेव असमर्थ थे। स्वयं ज्ञानदेव ने सीधो सादी मराठो में अभंगों की रचना की थी। प्रो. रानडे का मत है कि ज्ञानदेव के अभंगों की सादगी तथा कारक-चिह्नों की विभिन्नता का कारण छ शताब्दी से उनका स्मृति से रक्षित होते माना है। समझ में नहीं आता कि जिस ज्ञानदेव के गीता-भाष्य और असूतानुभव लेखबद्ध हो गए थे, उसके अभंग ही क्यों नहीं लेखबद्ध हुए। जो हो, प्रो० रानडे भी इस बात से सहमत हैं कि उनका जन्म सं० १३२७ में हुआ था और मृत्यु सं० १४०७ (सन् १३५०) में । कहा जाता है कि जवानी में नामदेव डाकू बन बैठा था और लूटमार कर आजीविका चलाता था। एक दिन उसके दल ने ८४ आदमियों के समूह को मार डाला। शहर में लौटकर आने पर उसने एक स्त्री को अत्यंत करुण क्रंदन करते हुए
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