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नागरीप्रचारिणी पत्रिका 'सत', 'सा' और 'सय' रूप होते हैं। 'सय' का विकृत रूप 'सै' और 'सार' का 'सौ' हो गया है। ____ कभी कभी 'कम' शब्द के प्रयोग के द्वारा भी संख्याएँ सूचित की जाती हैं, जैसे—'पाँच कम पचास' (=पैंतालीस)। पर इस प्रकार के प्रयोग प्राय: अशिक्षित लोग करते हैं। 'कम' शब्द हिंदी में फारसी भाषा से आया है। संस्कृत में भी 'कम' के समानार्थी 'ऊन' शब्द का प्रयोग होता है जो ‘एकोनविंशति' ( अर्थात् एक कम बीस = उन्नीस ) तथा 'ऊनपञ्चाशत्' (अर्थात् पचास से कम = उनचास ) आदि शब्दों में वर्तमान है।
यहाँ पर उन नियमों का उल्लेख करने के लिये स्थान नहीं है जिनके अनुसार प्राकृत तथा अपभ्रंश के शब्द खड़ी बोली के शब्दों
के रूप में परिवर्तित हो गए हैं। इन नियमों रूप-परिवर्तन के नियम .
- ने अध्ययन करने के लिये एक स्वतंत्र विषय का रूप धारण किया है। ऊपर कहा जा चुका है कि खड़ी बोली के संख्यावाचक शब्द प्रायः तद्भव हैं। नीचे दिए हुए संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा खड़ी बोली से मिलती-जुलती अन्य भाषाओं के संख्यावाचक शब्दों के रूपों से स्पष्ट हो जायगा कि किस प्रकार खड़ी बोली के संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति हुई है।
खड़ी बोली का 'शून्य' संस्कृत के शून्य का तत्सम है। बोलचाल में इसके तद्भव रूपो 'सुन्न' और 'सुन्ना' का भी प्रयोग होता
- है जो अपभ्रंश के 'सुन' < प्राकृत 'सुनो ' पूर्णांकबोधकों की उत्पत्ति
" से बना है। शून्य के लिये खड़ी बोली में
'सिफर' या 'सिफड़' का भी प्रयोग होता है जो फारसी के 'सिफर' से हिंदी में आ गया है।
संस्कृत के 'एक' से प्राकृत में 'एक', 'एको', 'एगो' और 'एमा' रूप बनते हैं। अपभ्रंश में भी 'एक्क' रूप होता है और इसी से
___ शून्य-बीस
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