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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
से उठ गई । उनके स्थान में उन्हीं के शब्दों के विकृत रूपों से बनी हुई बोलियों का व्यवहार होने लगा। ये बोलियाँ अपभ्रंश कहलाई । प्राकृतों के समान ये भी पैशाचो, शौरसेनी, मागधी, अर्द्धमागधी और महाराष्ट्री भेदों में विभक्त की जा सकती हैं । इन अपभ्रंशों के बोले जाने के स्थान वे ही प्रदेश थे जो इनकी मूल प्राकृतों के थे । कुछ समय के बाद इन अपभ्रंशों की भी वही दशा हुई जो संस्कृत और प्राकृत की हुई थी । साहित्यारूढ़ होकर ये भी नियमों से जकड़ गईं और साधारण बोलचाल में इनसे निकली हुई आधुनिक भारतीय भाषाओं - हिंदी, बँगला, मराठी और गुजराती इत्यादि — का व्यवहार होने लगा । जिस अपभ्रंश से जेा भाषा निकली है उस भाषा का व्यवहार उसी प्रदेश में होता है जिसमें उसकी मूल - अपभ्रंश का होता था ।
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हिंदी भाषा इस समय जिस स्थान में बोली जाती है वह बहुत विस्तृत है । पूर्वी पंजाब और राजपूताना से लेकर बिहार तक तथा हिमालय की तराई से मध्य प्रदेश तक हिंदी भाषा का विस्तार जन-साधारण की बोलचाल की भाषा हिंदी ही है। देश-भेद से इसके अनेक भेद हैं जिनमें से प्रधान राजस्थानी, पश्चिमी हिंदी और पूर्वी हिंदी हैं । अनेक विद्वान् बिहारी भाषा को भी हिंदी का ही एक उपभेद मानते हैं, और ऐसा मानना ठीक भी है। इसका स्पष्ट प्रमाण तो यही है कि मध्य प्रदेश अथवा संयुक्तप्रांत का कोई भी हिंदी-भाषा-भाषी बिहारवालों की बोली का अधिकांश भाग समझ लेता है । पूर्वी हिंदी और बिहारी की शब्दावली प्राय: एक है । बँगला से कुछ प्रभावित होने के कारण बिहारी को हिंदी से अलग एक स्वतंत्र भाषा मान लेना भ्रम है । बिहारी के अंतर्गत मगही, मैथिली और भोजपुरी बोलियाँ हैं ।
(१) 'हिंदी भाषा का विकास' - रायबहादुर श्यामसु ंदरदास ।
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