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________________ ३६८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका लित संख्यावाचक शब्दों के समान सुव्यवस्थित तथा नियमित संख्यावाचक शब्द न रहे होंगे। उनका क्रमिक विधान और उनकी सुव्यवस्था ज्योतिष और गणित शास्त्रों के प्रारंभिक काल में हुई होगी। पर ये दोनों शास्त्र भी कम पुराने नहीं हैं। संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में भी अनेक संख्यावाचक शब्द पाए जाते हैं। इससे स्पष्ट है कि संख्यावाचक शब्द बहुत प्राचीन काल से प्रार्यों की भाषा में विद्यमान थे। भारतवर्ष में गणित तथा ज्योतिष शास्रों और संस्कृत भाषा की उन्नति के साथ साथ संख्यावाचक शब्दों का भी विकास होता गया था और जिस समय संस्कृत भाषा खूब परिपुष्ट हो गई थी उस समय संख्यावाचक शब्द भी उसमें पूर्णतया विकसित और सुव्यवस्थित रूप में वर्तमान थे। ____ खड़ी बोली के संख्यावाचक शब्दों की उत्पत्ति के विषय में विचार करने से पहले अच्छा होगा कि संक्षेप में हम खड़ी बोली खड़ी बोली की उत्पत्ति, की उत्पत्ति को समझ लें। वैदिक काल में भारतवर्ष की प्राचीन उत्तरी भारत में जो भाषा बोली जाती थी उसके भाषाएँ नाम का ठीक पता नहीं लगता। वेदों की भाषा का बोध कराने के लिये महर्षि पाणिनि ने अपने व्याकरणग्रंथ में 'छंदस' शब्द का प्रयोग किया है। पर किसी अन्य प्रमाण से यह सिद्ध नहीं होता कि वेदों की भाषा का नाम 'छंदस' था । विद्वानों का अनुमान है कि देश-भेद के कारण उस भाषा में बड़ा * जिस शब्द के ऊपर यह चिह्न लगा हो उस शब्द को विद्वानों के द्वारा कल्पित समझना चाहिए। $ इस चिह्न से 'प्राटि किल' ( Article ) का संकेत होता है। सं. = संस्कृत अप० = अपभ्रंश प्रा. = प्राकृत ख. बो० = खड़ी बोली Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034974
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1935
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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